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Showing posts from May, 2018

दुलाराम जी मेघवाल... दुलाराम जी रतनगढ़ तहसील के प्रेमनगर, आलसर

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#मुलाकात __ ये हैं रतनगढ़ तहसील के प्रेमनगर, आलसर गांव के दुलाराम जी मेघवाल... दुलाराम जी  सेवाभाव से रोजाना 50 से अधिक लोगों के शरीर में दर्द, जोड़ो में दर्द, टूटी हुई हड्डी या नस, नाड़ी के दबने से होनेवाले दर्द का प्रभावी ईलाज अपने स्वयं के पैसों से देशी दवाईयां लाकर करते हैं। आप रोगी के घर जाकर देखने का भी कोई पैसा नहीं लेते हैं। एक तरफ समाज में दुलाराम जी जैसे साधारण कमाई वाले, कम पढ़ेलिखे या अनपढ़ निस्वार्थ सेवाभावी लोग देखने को मिलते हैं और दूसरी तरफ संपन्न और सभ्य समाज से कहाने वाले धरती के तथाकथित भगवान या डॉक्टर्स हैं। जो सरकार से उचित वेतन-भत्ते मिलने के बाद भी गरीब मरीजों से पैसे लेकर, जानबूझकर बाहर की दवाईयां लिखकर, अनावश्यक जांचें में कमीशन खाकर लूटने में कोई कोर कसर नहीं रखते हैं। दुलाराम जी व इनकी विचारों में कितना फर्क है। कभी सेवा की मूल भावना वाले पावन और संवेदनशील चिकित्सा पेशे में आज ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की लालसा सेवा की भावना पर हावी हो रही है। जो दुखद है और धरती के भगवानों से अनैतिक और असंवेदनशील काम करवा रही है। आमजन की नजरों में इन्हें गिरा रही है। . जा

रामावतार शर्मा जी का वक्तव्य

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"नाना के घर आए हो, खाली हाथ कैसे जाओगे?" ये शब्द महज़ स्नेह या लोक व्यवहार नहीं हैं! ये समाजशास्त्र या मानसशास्त्र को साधने की कला का उदाहरण भी नहीं हैं! ये शब्द धर्म का प्राण हैं। भारत की आत्मा हैं! आज से साढ़े पाँच वर्ष पहले सुने थे, तब से ओस की बूंदें बनकर हृदय को सींचते आए हैं... ये शब्द! 2012 की सर्दियाँ थीं। नई दिल्ली में आयोजित IBTL भारत संवाद प्रारंभ हुआ। (आदरणीय): श्रीमति निर्मला सीतारमण, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी, श्री महेश गिरी, श्री शेषाद्रि चारी, श्रीमति मीनाक्षी लेखी इत्यादि नामों से पहले एक अपरिचित सज्जन मंच पर आए... रामअवतार शर्मा जी। साइकल से सीता-राम-लक्ष्मण के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए अयोध्या से रामेश्वरम् और जनकपुर तक यात्रा कर आए थे। उन्होंने गाथा बताई.. कैसे राह भर के वनवासी श्री राम के विषय में यूँ बात करते मानों कुछ समय पहले ही राम वहाँ से होकर गए हों! जनकपुर के विषय में एक सुंदर घटना कही। उन्हीं के शब्दों में: "जनकपुर का जो मंदिर है.. उसके महंत जी के पास मैं गया। उन्होंने मुझे रिश्तेदार की तरह रखा। अनजान आदमी को! जब मैं चल

संस्कार

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🔥 *संस्कार*  एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके मा बाप वैसे तो उन चारो से बेहद प्यार करते थे , मगर मंझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मंझला बिलकुल अवारा और गंवार बनके ही रह गया सबसे बड़े बेटे और सबसे छोटे बेटे की शादी हो गई । और बहन का भी विवाह हो गया । बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी। आखिर उसके दो भाई डाक्टर इंजीनियर जो थे। लेकिन मंझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान था और मां भी परेशान थी। बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मंझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था। वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...नौकरी कौन देता। मझले की शादी किए बिना पिताजी गुजर गये । माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मंझला बड़े लगन से काम करने लगा । दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज