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Showing posts from September, 2015

डिजिटल इंडिया और इंफ्रास्ट्रक्चर

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डिजिटल इंडिया का सपना पूरा करने के लिए भारत को डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करना पड़ेगा। शेरपालो वेंचर्स के फाउंडर राम श्रीराम, जो गूगल में बड़े निवेशक हैं, उनका कहना है कि सरकार को डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर यानि ब्राडबैंड को गांव-गांव में पहुंचाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर लगाना पड़ेगा। सीएनबीसी आवाज़ की संवाददाता हर्षदा सावंत से खास बातचीत में उन्होनें कहा कि वे भारत के लोकल ई-कॉमर्स सेक्टर में जल्द ही फिर निवेश करने वाले हैं। उनका का कहना है कि भारत के लोगों में अच्छी आंत्रप्रेन्योरशिप है। बंगलुरू, मुंबई, दिल्ली में स्टार्ट-अप डेवलप हुए है। डिजिटल मार्केट, इंफ्रा का विकास होना जरूरी है। सरकार को डिजिटल इंफ्रा पर ध्यान देना होगा और इंटरनेट की पहुंच बढ़ानी चाहिए। ई-कॉमर्स वैल्युएशन में अब काफी बढ़त हुई है और कंज्यूमर को ई-कॉमर्स से काफी फायदा हुआ है। भारत में फिर निवेश शुरू किया जाएगा और लोकल ई-सर्विस में अच्छे मौके मिलेंगे। डिजिटल इकोनॉमी से देश का विकास हो रहा है। जल्द ही भारत में भी स्थिति सुधरती नजर आएगी।

बेहतर जिंदगी

माँ जिंदगी तब बेहतर होती है जब हम खुश होते है , लेकिन जिंदगी तब बेहतरीन होती है जब हमारी वजह से लोग खुश होते है. 🌹 🌹 जय श्री कृष्णा..

लोगों को जोड़ता है गाँव का अपनापन

मालिनी अवस्थी को किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है। मालिनी, शास्त्रीय संगीतज्ञ गिरजा देवी की शिष्या व अपने लोकगीतों की मिठास से श्रोताओं के दिल में जगह बनाने वाली मशहूर लोकगायिका हैं। मालिनी अवस्थी ने भोजपुरी, ठुमरी, गजल, सूफियाना व भजन सभी विधा में गायन किया है। लुप्त होती जा रही पारंपरिक लोक संगीत को नई ऊंचाई पर ले जाने में उनका महत्वूर्ण योगदान है। गाँव से शुरू होकर संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचने का जो उनका कनेक्शन बेहद रोचक है। गाँव कनेक्शन ने भी मालिनी अवस्थी से उनके गाँव से जुड़े कनेक्शन के तार को जानना चाहा। गाँव कनेक्शन के लिए गायत्री वोहरा की मालिनी अवस्थी से खास मुलाकात के कुछ अंश-     * मालिनी जी आपका गाँव कनेक्शन क्या है गाँव का मेरा कनेक्शन बहुत गहरा है, मेरा ननिहाल कन्नौज में हैं वहीं जन्म हुआ, ददिहाल फतेहपुर के पास बेहता गाँव है। 13 साल की उम्र तक तो हर गर्मियों की छुट्टियों में 15-15 दिन दोनों जगह रहना होता ही था। मेरे पिता पेशे से डॉक्टर थे। दरअसल भोजपुरी मैंने पापा के ही मरीजों से सुनकर सीखी, हमारी तरफ तो अवधी बोली जाती थी। ये जितने मरीज़ आते थे अंगोछा भर-भर के द

आजकल के आधुनिक समय में बच्चों का समय टेक्नालॉजी के साथ बितता है

इसका नतीजा यह रहता है कि बच्चे, परिवार के साथ अपना समय नहीं बिताते और इसका प्रभाव पैरेन्ट्स और बच्चों के रिश्तों पर पड़ता है। सेकंड एन्युअल हेलिफेक्स इंश्योरेंस डिजिटल डोम इंडेक्स की ओर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसमें बताया गया है कि 7 से 8 वर्ष की आयुवर्ग के एक तिहाई, 9 से 11 वर्ष के दो तिहाई और 12 से 14 आयुवर्ग के 10 से 9 बच्चे आज और पढ़ें: http://hindi.sputniknews.com/hindi.ruvr.ru/2014_03_19/269850937/ कल मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। तकरीबन 60 प्रतिशत पैरेन्ट्स इस बात को महसूस करते हैं कि आजकल बच्चे परिवार और दोस्तों के अलावा टेक्नालॉजी के साथ अपना अधिकांश समय बिताते हैं। यह रिपोर्ट फिमेलफ‌र्स्ट डॉट को डॉट यूके में सामने आई है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि हर बच्चा अपनी पॉकेट मनी से ब़़डी रकम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस में खर्च करता है वहीं हर तीसरा बच्चा घंटों तक अपना समय मोबाइल पर मैसेज चेक करने में निकाल देता है। लगभग दो तिहाई बच्चों ने इस बात को स्वीकार किया कि वे सोने के दौरान इन डिवाइसेस का प्रयोग करते हैं जिनमें मुख्य रूप से मोबाइल फोन और टेबलेट शामिल हैं।स