कश्यप मौलिक हिंदी कहानि -हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक हैं कश्यप

 वह अकेली थी. उसका पति कहीं चला गया था जब कश्यप बस ३ साल के थे. वह सुन्दर बहुत थी. स्टेज पर रोल बड़ी आसानी से मिल गया उसे – पहला ही रोल हीर का. जब काम पर जाती तो नन्हें कश्यप को किसके भरोसे छोड़ जाती? तो उसके शो के समय वह सबसे आगे की सीट पर होता.


हीर का अंत कुछ बदल दिया गया था, जूलिएट से प्रेरणा लेकर. कश्यप अपनी माँ को अपने सीने में खंजर उतारते देखता. पर्दा गिरते ही मेनेजर उसे पीछे ले जाता, और माँ फिर जीवित मिलती. अब यह तो मैं नहीं जानता की ऐसा वातावरण एक बच्चे के लिए ठीक है या नहीं. पर हाँ, इसकी छाप उनकी लेखनी पर बड़ी गहरी पड़ी.


चार सौ वर्ष पूर्व वह जब वे मेगासिटी आएं थे, उनकी आखें हर ओर मृत्यु को ही ढूंढ रही थी. उनकी लेखनी में आत्मकथा तो बिलकुल भी नहीं है. पर जो कुछ उन्होंने लिखा है वह उनके अपने अनुभावों का एक अजीब सा विस्तार ही है.


अपने शुरूआती नायकों की तरह ही उन्हें भी अजीब सनकें थीं. जब वे मेगासिटी आए थे, उस समय वे हमेशा अपनी जेब में एक चांदी का सिक्का रखते थे. उस सिक्के पर एक ओर सरस्वती और दूसरी ओर गणेश बने थे. हर पंद्रह-बीस मिनट में वे उस सिक्के को निकाल कर देखते, और वापस अन्दर रख देते. वे जानते थे कि यह व्यवहार विक्षिप्त था, पर फिर भी इसे बदल सकने की शक्ति उनके परे थी.


यह सिक्का उनके पास तब से था जब वे तेरह वर्ष के थे. उनकी माँ को दौरा पड़ा था, वे दौड़ कर दवा की शीशी लाए, पर जब तक उसे तोड़ कर उनकी नाक के नीचे लाए बहुत देर हो गई थी. महीने भर बाद घर खाली करते समय यह सिक्का मिला था उन्हें. उनकी डायरी के हिसाब से इस सिक्के की सनक कुछ तीन वर्ष बाद पड़ी.


कश्यप पचास वर्ष के थे जब वायरस सी-९९ ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया. उन्हें सनक लगी खुदको खुजाने की, और कांटेक्ट के २ दिन बाद उन्होंने अपने नाखून से अपनी दाहिनी आंख फोड़ डाली. जब तक किसी को पता चलता, उनके घावों से इतना खून बह चुका था कि उनका बच पाना संभव नहीं था. कहा जाता है उन्होंने अपनी जीभ तक छील डाली थी, दाँतों में रगड़ रगड़ कर.


आज वे भारत का सबसे बड़ा साहित्यिक एक्सपोर्ट हैं. हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक हैं कश्यप – कम से कम भारत के बाहर तो.  


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