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ममता ओर पिता का प्यार नसीब वालो को मिलता है

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पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि " उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।। बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी । पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है.. ?? तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया कि " जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना आता था मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह

क्या लेके आया बन्दा क्या लेके जाये गा

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पढोगे तो रो पड़ोगे जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई। फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी। और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म , गुलाबी , रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना , रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए। और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार । समय कैसे फटाफट निकल गया , पता ही नहीं चला। इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया , बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला। बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी , मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त , बच्चे की जिम्मेदारी , शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक

आजकल के आधुनिक समय में बच्चों का समय टेक्नालॉजी के साथ बितता है

इसका नतीजा यह रहता है कि बच्चे, परिवार के साथ अपना समय नहीं बिताते और इसका प्रभाव पैरेन्ट्स और बच्चों के रिश्तों पर पड़ता है। सेकंड एन्युअल हेलिफेक्स इंश्योरेंस डिजिटल डोम इंडेक्स की ओर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसमें बताया गया है कि 7 से 8 वर्ष की आयुवर्ग के एक तिहाई, 9 से 11 वर्ष के दो तिहाई और 12 से 14 आयुवर्ग के 10 से 9 बच्चे आज और पढ़ें: http://hindi.sputniknews.com/hindi.ruvr.ru/2014_03_19/269850937/ कल मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। तकरीबन 60 प्रतिशत पैरेन्ट्स इस बात को महसूस करते हैं कि आजकल बच्चे परिवार और दोस्तों के अलावा टेक्नालॉजी के साथ अपना अधिकांश समय बिताते हैं। यह रिपोर्ट फिमेलफ‌र्स्ट डॉट को डॉट यूके में सामने आई है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि हर बच्चा अपनी पॉकेट मनी से ब़़डी रकम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस में खर्च करता है वहीं हर तीसरा बच्चा घंटों तक अपना समय मोबाइल पर मैसेज चेक करने में निकाल देता है। लगभग दो तिहाई बच्चों ने इस बात को स्वीकार किया कि वे सोने के दौरान इन डिवाइसेस का प्रयोग करते हैं जिनमें मुख्य रूप से मोबाइल फोन और टेबलेट शामिल हैं।स