आजकल के आधुनिक समय में बच्चों का समय टेक्नालॉजी के साथ बितता है
इसका नतीजा यह रहता है कि बच्चे, परिवार के साथ अपना समय नहीं बिताते और इसका प्रभाव पैरेन्ट्स और बच्चों के रिश्तों पर पड़ता है।
सेकंड एन्युअल हेलिफेक्स इंश्योरेंस डिजिटल डोम इंडेक्स की ओर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसमें बताया गया है कि 7 से 8 वर्ष की आयुवर्ग के एक तिहाई, 9 से 11 वर्ष के दो तिहाई और 12 से 14 आयुवर्ग के 10 से 9 बच्चे आज
और पढ़ें: http://hindi.sputniknews.com/hindi.ruvr.ru/2014_03_19/269850937/
कल मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। तकरीबन 60 प्रतिशत पैरेन्ट्स इस बात को महसूस करते हैं कि आजकल बच्चे परिवार और दोस्तों के अलावा टेक्नालॉजी के साथ अपना अधिकांश समय बिताते हैं। यह रिपोर्ट फिमेलफर्स्ट डॉट को डॉट यूके में सामने आई है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि हर बच्चा अपनी पॉकेट मनी से ब़़डी रकम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस में खर्च करता है वहीं हर तीसरा बच्चा घंटों तक अपना समय मोबाइल पर मैसेज चेक करने में निकाल देता है। लगभग दो तिहाई बच्चों ने इस बात को स्वीकार किया कि वे सोने के दौरान इन डिवाइसेस का प्रयोग करते हैं जिनमें मुख्य रूप से मोबाइल फोन और टेबलेट शामिल हैं।समस्या यह है कि बच्चों की इन आदतों से पैरेन्ट्स परेशान तो होते हैं लेकिन वे बच्चों की इन लतों पर काबू करने में असफल होते हैं। इस बारे में एजुकेशनल साइकोलॉजिस्ट केरेन चुलेन का कहना है कि ऐसे में जरूरी है पैरेन्ट्स की जागरूकता। वे समय--समय पर बच्चों को परिवार से जुड़ने और उसकी अहमियत के बारे में बताएं।
सेकंड एन्युअल हेलिफेक्स इंश्योरेंस डिजिटल डोम इंडेक्स की ओर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसमें बताया गया है कि 7 से 8 वर्ष की आयुवर्ग के एक तिहाई, 9 से 11 वर्ष के दो तिहाई और 12 से 14 आयुवर्ग के 10 से 9 बच्चे आज
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कल मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। तकरीबन 60 प्रतिशत पैरेन्ट्स इस बात को महसूस करते हैं कि आजकल बच्चे परिवार और दोस्तों के अलावा टेक्नालॉजी के साथ अपना अधिकांश समय बिताते हैं। यह रिपोर्ट फिमेलफर्स्ट डॉट को डॉट यूके में सामने आई है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि हर बच्चा अपनी पॉकेट मनी से ब़़डी रकम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस में खर्च करता है वहीं हर तीसरा बच्चा घंटों तक अपना समय मोबाइल पर मैसेज चेक करने में निकाल देता है। लगभग दो तिहाई बच्चों ने इस बात को स्वीकार किया कि वे सोने के दौरान इन डिवाइसेस का प्रयोग करते हैं जिनमें मुख्य रूप से मोबाइल फोन और टेबलेट शामिल हैं।समस्या यह है कि बच्चों की इन आदतों से पैरेन्ट्स परेशान तो होते हैं लेकिन वे बच्चों की इन लतों पर काबू करने में असफल होते हैं। इस बारे में एजुकेशनल साइकोलॉजिस्ट केरेन चुलेन का कहना है कि ऐसे में जरूरी है पैरेन्ट्स की जागरूकता। वे समय--समय पर बच्चों को परिवार से जुड़ने और उसकी अहमियत के बारे में बताएं।