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ज़िन्दगी के पाँच सच

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ज़िन्दगी के पाँच सच जो आप जानना चाहोगे सच नं. 1 -: माँ के सिवा कोई वफादार नही हो सकता …!!!   सच नं. 2 -: गरीब का कोई दोस्त नही हो सकता सच नं. 3 -: आज भी लोग अच्छी सोच को नही , अच्छी सूरत को तरजीह देते हैं …!!! सच नं. 4 -: इज्जत सिर्फ पैसे की है , इंसान की नही …!!! सच न. 5 -: जिस शख्स को अपना खास समझो …. अधिकतर वही शख्स दुख दर्द देता है …!!! गीता में लिखा है कि .. ..... अगर कोई इन्सान बहुत हंसता है , तो अंदर से वो बहुत अकेला है अगर कोई इन्सान बहुत सोता है , तो अंदर से वो बहुत उदास है अगर कोई इन्सान खुद को बहुत मजबूत दिखाता है और रोता नही , तो वो अंदर से बहुत कमजोर है अगर कोई जरा जरा सी बात पर रो देता है तो वो बहुत मासूम और नाजुक दिल का है अगर कोई हर बात पर नाराज़ हो जाता है तो वो अंदर से बहुत अकेला और जिन्दगी में प्यार की कमी महसूस करता है लोगों को समझने की कोशिश कीजिये , जिन्दगी किसी का इंतज़ार नही करती , लोगों को एहसास कराइए की वो आप के लिए कितने खास है!!! 1. अगर जींदगी मे कुछ पाना हो तो ,,, तरीके बदलो..... , ईरादे नही.. 2. जब सड़क पर बारात नाच रही...

ये आजकल के चैनलों पर सास-बहू के अलावा कुछ आता ही नहीं है।

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"ये आजकल के चैनलों पर सास-बहू के अलावा कुछ आता ही नहीं है।" बूढ़ी माँ बोलीं। तभी अचानक टीवी पर फ्रांस में हुए हमलों की खबर सुनाई दी।  "फ्रांस में हुएे धमाके, 78 लोग मरे, 72 लोग घायल। ISIS का एक और आतंकवादी हमला।" ये सब सुनकर, कांपते हाथों से टीवी के चैनल बदल रही बूढ़ी माँ का दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था, मानो बम धमाके उनके घर में ही हुएे हों। बूढ़ी माँ ने बड़ी ही बेचैनी के साथ आवाज़ लगाई, "अरे राहुल के पापा, सुनते हो, ये न्यूज़ वाले क्या बक-बक कर रहे हैं। कह रहे हैं..." बीच में ही बात काटते हुएे एक भारी सी आवाज़ आयी जो लगभग 60 साल के आदमी की थी। वो अपना चश्मा साफ करते हुएे बोले, "अरे मोहतरमा, क्या तुम भी ये न्यूज़ चैनल देखती रहती हो। ये सब, साले बिके हुएे हैं। और वैसे भी, तुमहारी उम्र हो चली है, आस्था चैनल देखा करो।" इस बार बूढ़ी माँ, अपनी बात एक दर्द भरी आवाज़ में बोलीं, "कह रहे हैं कि फ्रांस में धमाके हुए हैं। " इतना सुनते ही पतिदेव सरपट दौड़कर आए, मानो उनकी ट्रेन छूट रही हो। भागने की वजह से उनका चश्मा टूट कर बिखर गया। उन्होंने आनन-...

मां बाप और सुख दुख

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ज़िंदगी मां के आँचल की गांठों जैसी है. गांठें खुलती जाती हैं. किसी में से दुःख और किसी में से सुख निकलता है. हम अपने दुःख में और सुख में खोए रहते हैं. न तो मां का आँचल याद रहता है और न ही उन गांठों को खोलकर मां का वो चवन्नी अठन्नी देना. याद नहीं रहती तो वो मां की थपकियां. चोट लगने पर मां की आंखों से झर झर बहते आंसू. शहर से लौटने पर बिना पूछे वही बनाना जो पसंद हो. जाते समय लाई, चूड़ा, बादाम और न जाने कितनी पोटलियों में अपनी यादें निचोड़ कर डाल देना. याद रहता है तो बस बूढे मां बाप का चिड़चिड़ाना. उनकी दवाईयों के बिल, उनकी खांसी, उनकी झिड़कियां और हर बात पर उनकी बेजा सी लगने वाली सलाह. आखिरी बार याद नहीं कब मां को फोन किया था. ऑफिस में यह कहते हुए काट दिया था कि बिज़ी हूं बाद में करता हूं. उसे फोन करना नहीं आता. बस एक बटन पता है जिसे दबा कर वो फोन रिसीव कर लेती है. पैसे चाहिए थे. पैसे थे, बैंक में जमा करने की फुर्सत नहीं थी. भूल गया था दसेक साल पहले ही हर पहली तारीख को पापा नियम से बैंक में पैसे डाल देते थे. शायद ही कभी फोन पर कहना पडा हो मां पैसे नहीं आए. शादी हो गई है. बच्च...