मकर संक्रांति महापर्व के बारे में इतनी महत्‍वपूर्ण बातें: आखिर क्यूं मनाते हैं मकर संक्रांति?

मकर संक्रान्ति (अंग्रेज़ी: Makar Sankranti) भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष जनवरी के महीने में समस्त भारत में मनाया जाता है।

 इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परम्परा से यह विश्वास किया जाता है कि इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह वैदिक उत्सव है। इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़–तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बाँटा जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीज़ें ही जीवन का आधार हैं। प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। यह एक अति महत्त्वपूर्ण धार्मिक कृत्य एवं उत्सव है। लगभग 80 वर्ष पूर्व उन दिनों के पंचांगों के अनुसार, यह 12वीं या 13वीं जनवरी को पड़ती थी, किंतु अब विषुवतों के अग्रगमन (अयनचलन) के कारण 13वीं या 14वीं जनवरी को पड़ा करती है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख मकर संक्रान्ति का उद्गम बहुत प्राचीन नहीं है। ईसा के कम से कम एक सहस्त्र वर्ष पूर्व ब्राह्मण एवं औपनिषदिक ग्रंथों में उत्तरायण के छ: मासों का उल्लेख है 'अयन' शब्द आया है, जिसका अर्थ है 'मार्ग' या 'स्थल। गृह्यसूत्रों में 'उदगयन' उत्तरायण का ही द्योतक है जहाँ स्पष्ट रूप से उत्तरायण आदि कालों में संस्कारों के करने की विधि वर्णित है। किंतु प्राचीन श्रौत, गृह्य एवं धर्म सूत्रों में राशियों का उल्लेख नहीं है, उनमें केवल नक्षत्रों के संबंध में कालों का उल्लेख है। याज्ञवल्क्यस्मृति में भी राशियों का उल्लेख नहीं है, जैसा कि विश्वरूप की टीका से प्रकट है 'उदगयन' बहुत शताब्दियों पूर्व से शुभ काल माना जाता रहा है, अत: मकर संक्रान्ति, जिससे सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती है, राशियों के चलन के उपरान्त पवित्र दिन मानी जाने लगी। मकर संक्रान्ति पर तिल को इतनी महत्ता क्यों प्राप्त हुई, कहना कठिन है। सम्भवत: मकर संक्रान्ति के समय जाड़ा होने के कारण तिल जैसे पदार्थों का प्रयोग सम्भव है। ईसवी सन के आरम्भ काल से अधिक प्राचीन मकर संक्रान्ति नहीं है संक्रांति का अर्थ 'संक्रान्ति' का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना, अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है। राशियाँ बारह हैं, यथा मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक , धनु, मकर, कुम्भ, मीन। मलमास पड़ जाने पर भी वर्ष में केवल 12 राशियाँ होती हैं। प्रत्येक संक्रान्ति पवित्र दिन के रूप में ग्राह्य है। मत्स्यपुराण ने संक्रान्ति व्रत का वर्णन किया है। एक दिन पूर्व व्यक्ति (नारी या पुरुष) को केवल एक बार मध्याह्न में भोजन करना चाहिए और संक्रान्ति के दिन दाँतों को स्वच्छ करके तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र तथा एक गाय यम, रुद्र एवं धर्म के नाम पर दे और चार श्लोकों को पढ़े, जिनमें से एक यह है- 'यथा भेदं' न पश्यामि शिवविष्ण्वर्कपद्मजान्। तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकर:शंकर: सदा।।, अर्थात् 'मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता, वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला है। दूसरे शंकर शब्द का अर्थ है- शं कल्याणं करोति। यदि हो सके तो व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्राह्मण को आभूषणों, पर्यंक, स्वर्णपात्रों (दो) का दान करे। यदि वह दरिद्र हो तो ब्राह्मण को केवल फल दे। इसके उपरान्त उसे तैल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन देना चाहिए। स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिए। संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। प्रत्येक संक्रान्ति पर सामान्य जल (गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्यकर्म कहा जाता है, जैसा कि देवीपुराण) में घोषित है- 'जो व्यक्ति संक्रान्ति के पवित्र दिन पर स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी एवं निर्धन रहेगा; संक्रान्ति पर जो भी देवों को हव्य एवं पितरों को कव्य दिया जाता है, वह सूर्य द्वारा भविष्य के जन्मों में लौटा दिया जाता है। नारी द्वारा दान मकर संक्रान्ति पर अधिकांश में नारियाँ ही दान करती हैं। वे पुजारियों को मिट्टी या ताम्र या पीतल के पात्र, जिनमें सुपारी एवं सिक्के रहते हैं, दान करती हैं और अपनी सहेलियों को बुलाया करती हैं तथा उन्हें कुंकुम, हल्दी, सुपारी, ईख के टुकड़े आदि से पूर्ण मिट्टी के पात्र देती हैं। दक्षिण भारत में पोंगल नामक उत्सव होता है, जो उत्तरी या पश्चिमी भारत में मनाये जाने वाली मकर संक्रान्ति के समान है। पोंगल तमिल वर्ष का प्रथम दिवस है। यह उत्सव तीन दिनों का होता है। पोंगल का अर्थ है 'क्या यह उबल रहा' या 'पकाया जा रहा है?' मान्यता यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाले व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाते हैं। महाभारत महाकाव्य में वयोवृद्ध योद्धा पितामह भीष्म पांडवों और कौरवों के बीच हुए कुरुक्षेत्र युद्ध में सांघातिक रूप से घायल हो गये थे। उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। पांडव वीर अर्जुन द्वारा रचित बाणशैया पर पड़े भीष्म उत्तरायण अवधि की प्रतीक्षा करते रहे। उन्होंने सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर ही अंतिम सांस ली, जिससे उनका पुनर्जन्म न हो। तिल संक्राति देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज़्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज़ भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को "तिल संक्राति" के नाम से भी पुकारा जाता है। तिल के गोल-गोल लड्डू इस दिन बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है; गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं। सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को "सौर वर्ष" कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना "क्रान्तिचक्र" कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाँटकर बारह राशियाँ बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना "संक्रान्ति" कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को "मकर संक्रान्ति" कहते हैं। मकर संक्राति के अवसर पर गंगा स्नान करते श्रद्धालु सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना 'उत्तरायण' तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना 'दक्षिणायन' है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है। आभार प्रकट करने का दिन पंजाब, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फ़सल काटने का होता है। कृषक मकर संक्रान्ति को 'आभार दिवस' के रूप में मनाते हैं। पके हुए गेहूँ और धान को स्वर्णिम आभा उनके अथक मेहनत और प्रयास का ही फल होती है और यह सम्भव होता है, भगवान व प्रकृति के आशीर्वाद से। विभिन्न परम्पराओं व रीति–रिवाज़ों के अनुरूप पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में "लोहड़ी" नाम से "मकर संक्रान्ति" पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज एक दिन पूर्व ही मकर संक्रान्ति को "लाल लोही" के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति 'पोंगल' के नाम से मनाया जाता है, तो उत्तर प्रदेश और बिहार में 'खिचड़ी' के नाम से मकर संक्रान्ति मनाया जाता है। इस दिन कहीं खिचड़ी तो कहीं चूड़ादही का भोजन किया जाता है तथा तिल के लड्डु बनाये जाते हैं। ये लड्डू मित्र व सगे सम्बन्धियों में बाँटें भी जाते हैं। गुड़-खिचड़ी संक्रान्ति चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है। पतंग उड़ाने का दिन यह दिन सुन्दर पतंगों को उड़ाने का दिन भी माना जाता है। लोग बड़े उत्साह से पतंगें उड़ाकर पतंगबाज़ी के दाँव–पेचों का मज़ा लेते हैं। बड़े–बड़े शहरों में ही नहीं, अब गाँवों में भी पतंगबाज़ी की प्रतियोगिताएँ होती हैं। विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति मकर संक्रान्ति भारत के भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ रखती है। किन्तु सदा की भॉंति, नानाविधी उत्सवों को एक साथ पिरोने वाला एक सर्वमान्य सूत्र है, जो इस अवसर को अंकित करता है। यदि दीपावली ज्योति का पर्व है तो संक्रान्ति शस्य पर्व है, नई फ़सल का स्वागत करने तथा समृद्धि व सम्पन्नता के लिए प्रार्थना करने का एक अवसर है। पंजाब में लोहड़ी मकर संक्रान्ति भारत के अन्य क्षेत्रों में भी धार्मिक उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब में इसे 'लोहड़ी' कहते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में नई फ़सल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। पुरुष और स्त्रियाँ गाँव के चौक पर उत्सवाग्नि के चारों ओर परम्परागत वेशभूषा में लोकप्रिय नृत्य भांगड़ा का प्रदर्शन करते हैं। स्त्रियाँ इस अवसर पर अपनी हथेलियों और पाँवों पर आकर्षक आकृतियों में मेहंदी रचाती हैं। बंगाल में मकर-सक्रांति पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति के दिन देश भर के तीर्थयात्री गंगासागर द्वीप पर एकत्र होते हैं, जहाँ गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। एक धार्मिक मेला, जिसे 'गंगासागर मेला' कहते हैं, इस समारोह की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस संगम पर डुबकी लगाने से सारा पाप धुल जाता है। इसी लिए कहा भी जाता है कि "सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार" कर्नाटक में मकर-सक्रांति कर्नाटक में भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। बैलों और गायों को सुसज्जित कर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। नये परिधान में सजे नर-नारी, ईख, सूखा नारियल और भुने चने के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते हैं। पंतगबाज़ी इस अवसर का लोकप्रिय परम्परागत खेल है। गुजरात में मकर-सक्रांति गुजरात का क्षितिज भी संक्रान्ति के अवसर पर रंगबिरंगी पंतगों से भर जाता है। गुजराती लोग संक्रान्ति को एक शुभ दिवस मानते हैं और इस अवसर पर छात्रों को छात्रवृतियाँ और पुरस्कार बाँटते हैं। केरल में मकर-सक्रांति केरल में भगवान अयप्पा की निवास स्थली सबरीमाला की वार्षिक तीर्थयात्रा की अवधि मकर संक्रान्ति के दिन ही समाप्त होती है, जब सुदूर पर्वतों के क्षितिज पर एक दिव्य आभा ‘मकर ज्योति’ दिखाई पड़ती है। मकर संक्रांति पर खान-पान तिल के लड्डू मकर संक्रांति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का स्वागत किया जाता है। शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनी फ़सल के कट कर घर में आने का उत्सव मनाया जाता है। उत्सव का आयोजन होने पर सबसे पहले खान-पान की चर्चा होती है। मकर संक्रांति पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीक़े और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है। किंतु एक विशेष तथ्य यह है कि मकर संक्राति के नाम, तरीक़े और खान-पान में अंतर के बावजूद सभी में एक समानता है कि इसमें व्यंजन तो अलग-अलग होते हैं, किन्तु उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री एक-सी होती है। यह महत्त्वपूर्ण पर्व माघ मास में मनाया जाता है। भारत में माघ महीने में सबसे अधिक सर्दी पड़ती है, अत: शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है। मकर संक्रांति में इन खाद्य पदार्थों के सेवन का यह भौतिक आधार है। इन खाद्यों के सेवन का धार्मिक आधार भी है। शास्त्रों में लिखा है कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। अगर व्यक्ति तिल का सेवन नहीं कर पाता है तो सिर्फ तिल-तिल जप करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भी है कि सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। चावल, गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह है कि इस समय ये फ़सलें तैयार होकर घर में आती हैं। इन फ़सलों को सूर्य देवता को अर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि "हे देव! आपकी कृपा से यह फ़सल प्राप्त हुई है। अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें, जो हमारे शरीर को उष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे।" मकर संक्रांति पर भारत के विभिन्न राज्यों में अपना-अपना खान-पान है- बिहार तथा उत्तर प्रदेश बिहार एवं उत्तर प्रदेश में खान-पान लगभग एक जैसा होता है। दोनों ही प्रांत में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल से खिचड़ी बनाई जाती है। कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है। लोग एक-दूसरे के घर खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग मकर संक्राति को "खिचड़ी पर्व" के नाम से भी पुकारते हैं। इस प्रांत में मकर संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही, गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं। चूड़े एवं मुरमुरे की लाई भी बनाई जाती है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति के दिन बिहार और उत्तर प्रदेश की ही तरह खिचड़ी और तिल खाने की परम्परा है। यहाँ के लोग इस दिन गुजिया भी बनाते हैं। दक्षिण भारत दक्षिण भारतीय प्रांतों में मकर संक्राति के दिन गुड़, चावल एवं दाल से पोंगल बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार की कच्ची सब्जियों को लेकर मिश्रित सब्ज़ी बनाई जाती है। इन्हें सूर्य देव को अर्पित करने के पश्चात सभी लोग प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते हैं। इस दिन गन्ना खाने की भी परम्परा है। पंजाब एवं हरियाणा पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में मक्के की रोटी एवं सरसों के साग को विशेष तौर पर शामिल किया जाता है। इस दिन पंजाब एवं हरियाणा के लोगों में तिलकूट, रेवड़ी और गजक खाने की भी परम्परा है। मक्के का लावा, मूँगफली एवं मिठाईयाँ भी लोग खाते हैं

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