राजस्थान की करणी माता देशनोक कस्बे का चूहे वाली माता का मंदिर -बीकानेर
राजस्थान की करणी माता देशनोक कस्बे का चूहे वाली माता का मंदिर
करणी माता का मंदिर देशनोक
वैसे तो इस मंदिर में
भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं और इनकी खासी तादाद में अगर कहीं सफेद
चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी __ तो आपके लिए खास _
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राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य जो जितना खूबसूरत है उतना ही विचित्र भी। कहीं रेत के बड़े-बड़े अस्थायी पहाड़ हैं तो कहीं तालाब की सुंदरता। शौर्य और परंपरा की गाथाओं से सजती शाम जहाँ है तो वहीं आराधना का जलसा दिखते आठों पहर भी रेत की तरह ही फैले हैं। ऐसी ही तिलिस्मी दुनिया से दिखते इस मरूस्थल में आश्चर्य और कौतूहल का विषय लिए बसा देशनोक कस्बा।
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राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य जो जितना खूबसूरत है उतना ही विचित्र भी। कहीं रेत के बड़े-बड़े अस्थायी पहाड़ हैं तो कहीं तालाब की सुंदरता। शौर्य और परंपरा की गाथाओं से सजती शाम जहाँ है तो वहीं आराधना का जलसा दिखते आठों पहर भी रेत की तरह ही फैले हैं। ऐसी ही तिलिस्मी दुनिया से दिखते इस मरूस्थल में आश्चर्य और कौतूहल का विषय लिए बसा देशनोक कस्बा।
सुनहरी रेत के बीच अपनी
आभा लिए दमक रहा यह स्थान वैसे तो छोटा ही है पर इसकी महत्ता व ख्याति विदेश तक
फैली हुई है। रेत के दामन में सुनहरे संगमरमर से गढ़ा एक मंदिर जिसकी नक्काशी यदि
ऊपरी दिखावे से आकर्षित करने की बात को चरितार्थ करती है तो भीतर की अलौकिकता
अच्छी सीरत का उदाहरण पेश करती है।
दैवीय शक्ति को समर्पित
इस स्थान के कुछ रहस्य आज भी बरकरार हैं जो किसी के लिए श्रद्धा तो किसी के लिए
खोज का विषय बने हुए हैं। लोग इस मंदिर में आते तो 'करणी माता के दर्शन के
लिए हैं पर साथ ही नजरें खोजती हैं सफेद चूहे को। 'चूहे वाला मंदिर' के नाम से भी प्रसिद्ध
यह मंदिर बीकानेर से कुछ ही दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर बना हुआ है। आस्था व
विज्ञान का तिलिस्मी तालमेल लिए अपने सीने में राज छुपाए बैठे इस मंदिर की यह पहली
विशेषता है।
इस मंदिर में भक्तों से
ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं और इनकी खासी तादाद में अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए
तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहाँ की मान्यता भी है। वैसे यहाँ चूहों
को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू आदि भक्तों के
द्वारा परोसा भी जाता है। असंख्य चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी
चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है। कहा तो यह भी
जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था तब भी यह मंदिर ही नहीं
बल्कि पूरा देशनोक इस बीमारी से महफूज था।
बीकानेर से करीब 30 किमी दूर बने इस मंदिर
को 15 वीं शताब्दी में राजपूत राजाओं ने बनवाया था। माना जाता है कि देवी
दुर्गा ने राजस्थान में चारण जाति के परिवार में एक कन्या के रूप में जन्म लिया और
फिर अपनी शक्तियों से सभी का हित करते हुए जोधपुर और बीकानेर पर शासन करने वाले
राठौड़ राजाओं की आराध्य बनी। 1387
में जोधपुर के एक गाँव
में जन्मी इस कन्या का नाम वैसे तो रिघुबाई था पर जनकल्याण के कार्यों के कारण
करणी माता के नाम से इन्हें पूजा जाने लगा। और यह नाम इन्हें मात्र 6 साल की उम्र में ही
उनके चमत्कारों व जनहित में किए कार्यों से प्रभावित होकर ग्रामीणों ने दिया था।
वैसे तो यहाँ साल भर
श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है पर साल में दो बार यानी नवरात्रि में यहाँ विशेष
मेला भी लगता है जिसमें देश भर के भक्त देवी दर्शन के लिए आते हैं। वैसे यह मंदिर
करणी माता के अंतर्ध्यान होने के बाद बनवाया गया था। किंवदंती के अनुसार करणी माता
के सौतेले पुत्र की कुएँ में गिरने से मृत्यु होने पर उन्होंने यमराज से बेटे को
जीवित करने की माँग की। यमराज ने करणी माता के आग्रह पर उनके पुत्र को जीवित तो कर
दिया पर चूहे के रूप में। तब से ही यह माना जाता है कि करणी माता के वंशज
मृत्युपर्यंत चूहे बनकर जन्म लेते हैं और देशनोक के इस मंदिर में स्थान पाते हैं।
यह तो बात हुई
मान्यताओं की पर इतिहास पर नजर दौड़ाएँ तो भी करणीमाता का अपना स्थान राजस्थान की
गाथाओं में मिलता है। करणी माता ने अपने जीवनकाल में कई राजपूत राजाओं के हित की
बात की। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो देशनोक का करणी माता मंदिर बीकानेर के
राजा गंगासिंह ने बनवाया था। संगमरमर पर की गई नक्काशी और आकर्षित करती आकृतियों
के अलावा चाँदी के दरवाजे मंदिर की शोभा और भी बढ़ा देते हैं। वैसे बीकानेर के बसने
से पहले भी करणी माता को इतिहास ने अपने पन्नों पर स्थान दिया है।
1453
में
राव जोधा ने अजमेर, मेड़ता
और मंडोर पर चढ़ाई करने से पूर्व करणी माता से आशीर्वाद लेने की बात सामने आती है।
इसके बाद 1457 में राव जोधा ने जोधपुर के एक किले की नींव भी करणी माता से ही
रखवाई थी। बात यहीं नहीं खत्म होती राजनीति और एकता की बात भी करणी माता की कथाओं
के माध्यम से जानने को मिलती है। उन दिनों भाटी और राठौड़ राजवंशों के संबंध कुछ
ठीक नहीं थे। ऐसे में राव जोधा के पाँचवें पुत्र राव बीका का विवाह पुंगल के भाटी
राजा राव शेखा की पुत्री रंगकंवर से करवाकर करणी माता ने दो राज्यों को मित्र बना
दिया। पश्चात 1485 में राव बीका के आग्रह पर बीकानेर के किले की नींव भी करणी माता ने
ही रखी।
इसके अलावा इतिहास के
किसी खजाने में यह जानकारी भी मिलती है कि जैसलमेर के राजा ने भी करणी माता को
अपने महल में आदर दिया था। बात चाहे जो भी हो, किंवदंती चाहे कुछ भी
कहे, इतिहास
की पंक्तियों में जो भी जानकारी मिले यह तो साफ जाहिर है कि इस शक्ति को राजस्थान
ही नहीं बल्कि हर आस्थावान व्यक्ति नमन करता है।