कैरियर कहीं आप भी सरकारी नौकरी के पीछे तो नहीं भाग रहे?
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश
में हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती मगर उद्यमिता की शिक्षा हासिल करने
वाले युवाओं के लिए यहां का बाजार एक बड़े मौके की तरह है। तो फिर सरकारी नौकरी के
लिए लंबी कतार में क्यों लगें? क्यों न अपनी पसंद के काम में अपने बॉस खुद बनें...?
हाल में उत्तर प्रदेश में चपरासी पद की
मात्र 368 रिक्तियों के लिए 23.25
लाख आवेदन आना अखबारों में सुर्खियां तो बना ही, इससे राज्य सरकार का संबंधित विभाग भी
हैरान-परेशान हो गया कि आखिर इतने आवेदकों का साक्षात्कार लिया कैसे जाएगा! देश
में बेरोजगारी की हालत बयां करने वाला इससे जुड़ा एक और दिलचस्प पहलू है। उक्त पद
के लिए जहां न्यूनतम योग्यता पांचवीं पास है, वहीं आवेदन करने वाले 1.53 लाख स्नातक, 25
हजार स्नातकोत्तर तथा 250 पीएचडी भी हैं! वैसे
यूपी-बिहार जैसे राज्यों में कुछ सरकारी पदों के लिए लाखों की संख्या में आवेदन
मिलना कोई नई बात नहीं है। कुछ वर्ष पहले सफाई कर्मी पद के लिए भी लाखों लोगों ने
आवेदन किया था, जिसमें हर वर्ग के
उम्मीदवार शामिल थे। हाल के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में होने वाली सैन्य
भर्तियों में उमड़ने वाली भीड़ के कारण अक्सर भगदड़ और दंगे जैसी स्थिति देखी जाती
रही है।
इस सबसे दो बातें स्पष्ट होती हैं। एक तो, सरकारी नौकरियों के
लिए हमारे देश में जबर्दस्त क्रेज है। दूसरे, हमारे शिक्षा संस्थानों में उद्यमिता यानी एंटरप्रेन्योरशिप को
बढ़ावा देने की शिक्षा न मिलने के कारण ही ज्यादातर युवा सरकारी नौकरियों के पीछे
भागते रहते हैं।
तलाश पसंद के काम की
हमारे देश में हर साल तकरीबन 50 लाख युवा डिग्रियां
लेकर निकलते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों, पीएसबी, पीएसयू, स्थानीय निकायों आदि
में इतनी रिक्तियां नहीं होतीं कि हर किसी को सरकारी नौकरी मिल सके। निजी क्षेत्र
की नौकरियों के लिए उच्चर श्रेणी का अपडेटेड हुनर होना चाहिए, जो हमारी पारंपरिक
शिक्षा व्यवस्था में सभी युवाओं को नहीं मिल पा रहा। ऐसे में हर साल बेरोजगारों की
संख्या में विस्फोटक इजाफा होता जा रहा है। सरकारी नौकरी न मिलने पर युवा अपना
करियर बनाने या जीवन चलाने के लिए उपयुक्त नौकरी की तलाश करता है। कई बार उसे अपने
मन का काम मिल जाता है और कई बार नहीं भी मिलता।
कभी-कभी उसे अपनी पसंद के विपरीत काम करने
के लिए मजबूर होना पड़ता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें काफी प्रयास
के बाद भी नियमित नौकरी नहीं मिल पाती। जाहिर है कि जीवन चलाने के लिए इन्हें भी
कुछ-न-कुछ तो करना ही है। पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था में वक्त के साथ बदलाव न आना
ही इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इसके लिए सरकारों और शिक्षा संस्थानों से
समुचित कदम उठाने की उम्मीद की जाती है। कुछ संस्थानों ने तो प्रशंसनीय पहल की है
लेकिन यह अभी पर्याप्त नहीं है।
सही सोच, सही राह
बढ़ती आबादी और बदलते वक्त की जरूत को देखते
हुए हमारी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाने और उसे रोजगारपरक बनाने की जरूरत है।
नियमित कोर्सों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में हुनरमंद बनाने वाले व्यवहारिक कोर्स
भी शुरू किए जाने चाहिए। हाल के दिनों में विभिन्ना क्षेत्रों में युवाओं द्वारा
शुरू किए जाने वाले स्टार्ट-अप्स की कामयाबी यह बताती है कि उद्यमिता के क्षेत्र
में बेशुमार मौके हैं, बशर्ते सही सोच के
साथ सही राह पर मन और मेहनत से काम किया जाए।
उद्यमिता क्रांति है विकल्प
भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश में अगर
स्कूली स्तर से ही बच्चों को उनकी रुचि के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जाए, तो बड़े होने पर
उन्हें सरकारी नौकरी के पीछे नहीं भागना पड़ेगा। अपनी स्किल की बदौलत उन्हें आसानी
से नौकरी मिल भी सकती है और अपना काम शुरू करने की चाह होने पर वे बैंकों/ सरकारी
संस्थाओं से लोन लेकर अपने कदम उद्यमिता की ओर बढ़ा सकते हैं। वैसे तो स्किल इंडिया
मिशन को आगे बढ़ाने के क्रम में नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन देश भर में अपने
केंद्रों और सहभागी संस्थानों के जरिये विभिन्न कोर्स संचालित कर रहा है लेकिन
वक्त की जरूरत को देखते हुए अब हर संस्थान में ऐसे उपयोगी/ व्यवहारिक केंद्रों की
जरूरत है।
फैकल्टी भी हो प्रेरित
विद्यार्थियों को हुनरमंद बनाने के लिए
अध्यापकों को भी बदलना होगा। उन्हें समझना होगा कि शिक्षा संस्थानों से जुड़कर वे
सिर्फ नौकरी नहीं कर रहे है। उनके ऊपर विद्यार्थियों को तराशने-निखारने की बड़ी
जिम्मेदारी है। एक अध्यापक अपने पूरे करियर में हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाता और
आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है। वह सिर्फ उन्हें परीक्षा पास कराने के लिए ही
जिम्मेदार नहीं होता, बल्कि उसके ऊपर ऐसे
युवा गढ़ने की जिम्मेदारी भी होती है, जो देश और समाज को आगे ले जा सकें।