कृष्ण और सुदामा की मित्रता

कृष्ण और सुदामा की मित्रता





 कृष्ण-सुदामा की मित्रता बहुत प्रचलित है। सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। अपने बच्चों का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नहीं थे। सुदामा की पत्नी ने कहा, "हम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न?" इतना बोलते-बोलते उसकी आंखों में आंसू आ गए। सुदामा को बहुत दुख हुआ। उन्होंने कहा - "क्या कर सकते हैं? किसी के पास माँगने थोड़े ही जा सकते है।" पत्नी ने सुदामा से कहा - "आप कई बार कृष्ण की बात करते हो। आपकी उनके साथ बहुत मित्रता है ऐसा कहते हो। वे तो द्वारका के राजा हैं।
 वहां क्यों नहीं जाते ? जाइए न ! वहां कुछ भी मांगना नहीं पड़ेगा !" सुदामा को पत्नी की बात सही लगी। सुदामा ने द्वारका जाने का तय किया। पत्नी से कहा - "ठीक है, मैं कृष्ण के पास जाऊंगा। लेकिन उसके बच्चों के लिए क्या लेकर जाऊं ?"सुदामा की पत्नी पड़ोस में से पोहे ले आई। उसे फटे हुए कपडे में बांधकर उसकी पोटली बनाई। सुदामा उस पोटली को लेकर द्वारका जाने के लिए निकल पड़े। द्वारका देखकर सुदामा तो दंग रह गए। पूरी नगरी सोने की थी।
 लोग बहुत सुखी थे। सुदामा पूछते-पूछते कृष्ण के महल तक पहुंचे। दरवान ने साधू जैसे लगनेवाले सुदामा से पूछ - "आपको, यहाँ क्या काम है?" सुदामा ने जवाब दिया - "मुझे कृष्ण से मिलना है। वह मेरा मित्र है। अंदर जाकर कहिए कि सुदामा आपसे मिलने आया है।" दरवान को सुदामा के वस्त्र देखकर हंसी आई। उसने जाकर कृष्ण को बताया। सुदामा का नाम सुनते ही कृष्ण खड़े हो गए ! और सुदामा से मिलने दौड़े ।
 सभी आश्चर्य से देख रहे थे ! कहां राजा और कहां ये साधू ? कृष्ण सुदामा को महल में ले गए। सांदीपनी ऋषि के गुरुकुल के दिनों की यादें ताज़ा की। सुदामा कृष्ण की समृद्धि देखकर शर्मा गए। सुदामा पोहे की पोटली छुपाने लगे, लेकिन कृष्ण ने खिंच ली। कृष्ण ने उसमें से पोहे निकाले। और खाते हुए बोले - "ऐसा अमृत जैसा स्वाद मुझे और किसी में नहीं मिला।" बाद में दोनों खाना खाने बैठे।
 सोने की थाली में अच्छा भोजन परोसा गया। सुदामा का दिल भर आया। उन्हें याद आया कि घर पर बच्चों को पूरा पेट भर खाना भी नहीं मिलता है। सुदामा वहां दो दिन रहे। वे कृष्ण के पास कुछ मांग नहीं सके। तीसरे दिन वापस घर जाने के लिए निकले। कृष्ण सुदामा के गले लगे और थोड़ी दूर तक छोड़ने गए। घर जाते हुए सुदामा को विचार आया, "घर पर पत्नी पूछेगी कि क्या लाए? तो क्या जवाब दूंगा ?" सुदामा घर पहुंचे। वहां उन्हें अपनी झोपड़ी नज़र ही नहीं आई ! उतने में ही एक सुंदर घर में से उनकी पत्नी बाहर आई।
 उसने सुंदर कपड़े पहने थे। पत्नी ने सुदामा से कहा - "देखा कृष्ण का प्रताप ! हमारी गरीबी चली गई, कृष्ण ने हमारे सारे दुख दूर कर दिए।" सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया। उनकी आंखों में खूशी के आंसू आ गए।

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