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बच्चों को लेकर राइट बिहेवियर Vs रॉन्ग बिहेवियर

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सारे पैरंट्स की चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतरीन परवरिश दें। वे कोशिश भी करते हैं, फिर भी ज्यादातर पैरंट्स बच्चों के बिहेवियर और परफॉर्मेंस से खुश नहीं होते। उन्हें अक्सर शिकायत करते सुना जा सकता है कि बच्चे ने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया... इसके लिए काफी हद तक पैरंट्स ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि अक्सर किस हालात में क्या कदम उठाना है, यह वे तय ही नहीं कर पाते। किस स्थिति में पैरंट्स को क्या करना चाहिए और क्यों, बता रही हैं प्रियंका सिंह : image credit cdn.theconversation.com  1. बच्चा स्कूल जाने/पढ़ाई करने से बचे तो...  क्या करते हैं पैरंट्स पैरंट्स बच्चे पर गुस्सा करते हैं। मां कहती हैं कि तुमसे बात नहीं करूंगी। पापा कहते हैं कि बाहर खाने खिलाने नहीं ले जाऊंगा, खिलौना खरीदकर नहीं दूंगा। थोड़ा बड़ा बच्चा है तो पैरंट्स उससे कहते हैं कि कंप्यूटर वापस कर, मोबाइल वापस कर। तुम बेकार हो, तुम बेवकूफ हो। अपने भाई/बहन को देखो, वह पढ़ने में कितना अच्छा है और तुम बुद्धू। कभी-कभार थप्पड़ भी मार देते हैं। क्या करना चाहिए - वजह जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ने से क्यों बच रह

इसे कहते है सजीविता अहसास

आजकल हर किसी के पास ओपिनियन है.. स्मार्टनेस की लड़ाई में मैटर कोई भी हो बीच में कूदने वालों की कमी नही.. सब बोलना चाहते हैं.. सब एक्सप्रेसिव् हो गए हैं.. ऐसा लगता है मानो ज्ञान की गंगा बह चली हो.. पर सब बकवास है.. किसी को कुछ नहीं आता.. मुझे तो नींद भी नहीं आती.. तुम्हें तो रोना भी नहीं आता.. उसे तो हँसना भी नहीं आता.. दर्द बाँटना नहीं आता.. निर्जीव कार के स्क्रैच का बदला लोग सजीव सर फोड़ के लेते हैं.. किसी को मारने नहीं आता , किसी को बचाने नहीं आता.. सुना किसी की मौत करोड़ों में बिकी है.. चौबीस घंटे से एक लाश पड़ी है पुल पर.. उठाने तो दूर , उसे देखने भी कोई भी नहीं आता.. मुझे आजकल लोगों के मिजाज पसंद आने लगे हैं.. कोई कुछ बताने नहीं आता तो कोई कुछ पूछने भी नहीं आता.. लिखता हूँ फिर लकीरें मिटाता हूँ , लिखना भी नहीं आता मिटाना भी नहीं आता.. चलो मान लिया तुम्ही ठीक हो , पर तुम्हे भी तो सर झुकाना नहीं आता मुझे गिरना नहीं आता , तुम्हें सम्भलना नहीं आता.

आँख मे गुहेरी

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                                                                                                                                                              अंजनहारी (गुहेरी )- आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं , उसे ही अंजनहारी , गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के अनुसार विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं | अंजनहारी का विभिन्न औषधियों से उपचार- १- छुहारे के बीज को पानी के साथ घिस लें | इसे दिन में २-३ बार अंजनहारी पर लगाने से लाभ होता है |  २- तुलसी के रस में लौंग घिस लें | अंजनहारी पर यह लेप लगाने से आराम मिलता है |  ३- हरड़ को पानी में घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से लाभ होता है |  ४- आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है , उस रस को गुहेरी पर लगाने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है |  ५- प्रतिदिन सु

संतरे बेच करा दिया गरीब बच्चों के लिए स्कूल का निर्माण; अब कॉलेज बनाने की तैयारी

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कर्नाटक में मेंगलोर के रहने वाले हरेकला हजब्बा यूं तो कहने के लिए अनपढ़ हैं , लेकिन समाज में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं।   डेक्कन क्रॉनिकल में छपी रिपोर्ट   के मुताबिक , पिछले 30 साल से संतरे बेचकर अपना गुजारा चलाने वाले हजब्बा ने पाई-पाई जोड़कर अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा दिया है। यही नहीं , अब वह एक कॉलेज बनाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।   हजब्बा मेंगलोर से करीब 25 किलोमीटर दूर हरेकला में नई पप्ड़ु गांव के रहने वाले हैं। वह स्थानीय लोगों के लिए किसी संत से कम नही हैं। यही वजह है कि उन्हें यहां अक्षरा सांता (अक्षरों के संत) के नाम से जाना जाता है। हजब्बा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। शुरू में उन्होंने बीड़ी बनाने का काम किया। पर कहते हैं कि हौसला इंसान की सबसे बड़ी ताक़त है। हजब्बा ने तब संतरा बेचना शुरू किया तो लगा कि जैसे उनके जीवन जीने का मकसद ही बदल गया। हजब्बा कहते हैं “ मैं कभी स्कूल नहीं गया। बचपन में ही ग़रीबी ने मुझे संतरे बेचने के लिए मजबूर कर दिया। एक दिन मैं दो विदेशियों से मिला , जो  कुछ संतरे खरीदना चाहते थे।