इसे कहते है सजीविता अहसास

आजकल हर किसी के पास ओपिनियन है.. स्मार्टनेस की लड़ाई में मैटर कोई भी हो बीच में कूदने वालों की कमी नही.. सब बोलना चाहते हैं.. सब एक्सप्रेसिव् हो गए हैं.. ऐसा लगता है मानो ज्ञान की गंगा बह चली हो.. पर सब बकवास है.. किसी को कुछ नहीं आता.. मुझे तो नींद भी नहीं आती.. तुम्हें तो रोना भी नहीं आता.. उसे तो हँसना भी नहीं आता.. दर्द बाँटना नहीं आता.. निर्जीव कार के स्क्रैच का बदला लोग सजीव सर फोड़ के लेते हैं.. किसी को मारने नहीं आता, किसी को बचाने नहीं आता.. सुना किसी की मौत करोड़ों में बिकी है.. चौबीस घंटे से एक लाश पड़ी है पुल पर.. उठाने तो दूर, उसे देखने भी कोई भी नहीं आता.. मुझे आजकल लोगों के मिजाज पसंद आने लगे हैं.. कोई कुछ बताने नहीं आता तो कोई कुछ पूछने भी नहीं आता.. लिखता हूँ फिर लकीरें मिटाता हूँ, लिखना भी नहीं आता मिटाना भी नहीं आता.. चलो मान लिया तुम्ही ठीक हो, पर तुम्हे भी तो सर झुकाना नहीं आता मुझे गिरना नहीं आता, तुम्हें सम्भलना नहीं आता.

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