लोगों को जोड़ता है गाँव का अपनापन



मालिनी अवस्थी को किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है। मालिनी, शास्त्रीय संगीतज्ञ गिरजा देवी की
शिष्या व अपने लोकगीतों की मिठास से श्रोताओं के दिल में जगह बनाने वाली मशहूर लोकगायिका हैं। मालिनी अवस्थी ने भोजपुरी, ठुमरी, गजल, सूफियाना व भजन सभी विधा में गायन किया है। लुप्त होती जा रही पारंपरिक लोक संगीत को नई ऊंचाई पर ले जाने में उनका महत्वूर्ण योगदान है। गाँव से शुरू होकर संगीत की ऊंचाइयों तक पहुंचने का जो उनका कनेक्शन बेहद रोचक है। गाँव कनेक्शन ने भी मालिनी अवस्थी से उनके गाँव से जुड़े कनेक्शन के तार को जानना चाहा। गाँव कनेक्शन के लिए गायत्री वोहरा की मालिनी अवस्थी से खास मुलाकात के कुछ अंश-

    * मालिनी जी आपका गाँव कनेक्शन क्या है

गाँव का मेरा कनेक्शन बहुत गहरा है, मेरा ननिहाल कन्नौज में हैं वहीं जन्म हुआ, ददिहाल फतेहपुर के पास बेहता गाँव है। 13 साल की उम्र तक तो हर गर्मियों की छुट्टियों में 15-15 दिन दोनों जगह रहना होता ही था। मेरे पिता पेशे से डॉक्टर थे। दरअसल भोजपुरी मैंने पापा के ही मरीजों से सुनकर सीखी, हमारी तरफ तो अवधी बोली जाती थी। ये जितने मरीज़ आते थे अंगोछा भर-भर के देसी फल जैसे जामुन, फालसे कटहल दे जाते थे, लाल हांडी में जमा दही घी सब इन्हीं से मिलता था, यही सब इनकी फीस हुआ करती थी। अभी हाल ही में कैनूर जिले में एक कार्यक्रम में जाना हुआ, वहां रास्ते में कच्चे आम दिख गए, यूंही मुंह से निकल गया, दिल्ली में नहीं मिलते ऐसे अचार बनाने वाले आम, लौटते में शगुन के 11 किलो आम मेरे सामान में बंधवा दिए गए थे, ठीक वैसे ही जैसे बेटियों की हर जिद्द पूरी होती है। ये अपनापन गाँव में है, यही लोगों को जोड़ता है।

    * लोक संगीत, लोकगीत लोगों को ज्यादा बेहतर जोड़ता है। ऐसा क्यों?

मैं सामूहिक गतिविधियों में विश्वास रखने वाली महिला हूँ। लोक गीत किसी एक का नहीं होता, जनजातीय और लोक संस्कृति में सबको जोडऩे की सबसे ज्यादा ताकत है। मेरे लिए लोगों से जुडऩा आसान होता है, मैंने इसी को सीखा है। 15 साल के संघर्ष में मैंने इसी संस्कृति को, इसी सोहर को, बन्ना-बननी, झुलनी को सुनाते हुए अपना रास्ता बनाया है। जब भी लोगों के बीच गयी, मेरी कोशिश रही है कि मेरे परिधान से, मेरी बोल-चाल से उनके बीच की ही लगूं। मुश्किल आई पर धीर-धीरे रास्ते खुलते गए।

    * क्या गाँव से ये लोक गीत अब ज्यादा तेज़ी से गायब हो रहे हैं?

लोगों में एक पूर्वाग्रह आ गया है कि गाँव का अर्थ पिछड़ा होता है। आज गाँव में लोग जानते-बूझते भी लोक गीत नहीं गाना चाहते। गाँव के लोगों का अपनी ही धरोहर को कम आंकना दुर्भाग्यपूर्ण है। सच तो ये है कि लोक गीतों में वृक्ष संरक्षण, दहेज़ प्रथा की खिलाफत जैसे समय के मुद्दे झलकते हैं। ये कला अपने समय से बहुत आगे की है, इधर के कुछ 8-10 साल में शहरों में लोक गीत को लेकर चेतना आई है, इस चेतना का गाँव में पहुंचना ज़रूरी है ग्रामीण और पिछड़े होने में फर्क है, इस फर्क का गाँव में समझाया जाना ज़रूरी है।

    * आजकल जिस तरह लोक संस्कृति को दिखाया जाता है, क्या वो इस कला से न्याय कर पाएं हैं?

देखिए, मेरा मानना है कि आजकल के लोग गाँव ही नहीं समझ पाए तो वहां का गाना कैसे समझेंगे। किसी भी अंचल का व्यक्ति होगा वो अपने लोक संगीत से ज़रूर जुड़ेगा, ये प्राचीन मंदिर की तरह है जो सदियों से मानी जाती हैं पर आजकल 3-4 बिरही, भोजपुरी के शब्द डालकर लोक संगीत दिखने की कोशिश होती है। लोक संगीत को आजकल बहुत हल्केपन के साथ परोसा जा रहा है, जब तक गाँव की पृष्ठभूमि को नहीं समझेंगे, गाँव की कला के साथ न्याय कर पाना मुमकिन नहीं है।

    * यूपी और बिहार राज्यों को आज पिछड़ा मानते हैं, क्या आपको लगता है इन राज्यों की महिलाएं भी पीछे ही रह गयी है?

प्रदेश की लड़कियां तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं, हम जब बिहार में या यूपी में ही कार्यक्रम करने जाते हैं तब रात में भी औरतें कार्यक्रम सुनने आती हैं, पहले ऐसा नहीं होता था। युवा लडकियां आज पढऩा चाहती हैं, पढ़ भी रही हैं, उनके चेहरों में जैसा आत्मविश्वास दिखता है वैसा पहले नहीं दिखता था। आज यूपी बिहार की लड़कियां हर तरह के काम में आगे बढऩे के लिए सक्षम हैं।

    * क्या लोक गीत लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का एक सशक्त साधन है?

बिलकुल है, ऐसा न होता तो चुनाव आयोग मुझे जरिया बनाकर प्रदेश में मतदान के लिए जागरूकता बढ़ाने को कभी नहीं भेजता, लोक कलाकार लोगों के बीच से ही उठकर आते हैं और उन्ही जैसे दिखते हैं, बोलते हैं, उनकी बात मानना, समझना आम लोगों के लिए ज्यादा आसान होता है। एक लोक कलाकार लोगों के स्तर पर जाकर उनसे बात कर सकता है ऐसे में ज्यादा असर पडऩा स्वाभाविक है।

    * अपने संघर्ष के बारे में बताएं।

जैसा कि मैंने बताया, मां ने हमेशा से ही साथ दिया था शादी के बाद सास और पति ने भी पूरा साथ दिया, मेरे पति आईएएस ऑफिसर हैं इसलिए तारीफें मिलना बड़ा आसान हुआ करता था, थोड़ा सा कुछ गा देती थी, तो भी बहुत सी तालियां मिल जाती थीं। ऐसे में क्या मैं सच में अच्छा कर रही हूँ, ये समझना एक संघर्ष था, मैंने लोक संस्कृति के बारे में जितना हो सकता था पढ़ा, पद्मभूषण विद्यानिवास मिश्र जी की लोक संस्कृति पर लिखी कृतियों से मदद मिली थी, फिर मेरे पति ने मेरा बहुत साथ दिया।

    * क्या आपको लगता है एक महिला और एक सफल महिला होने में बहुत अंतर है?

सफलता के मयाने सबके लिए अलग होते हैं मेरी सास ने अपने तीनों बेटों को पढ़ा-लिखा कर इतना काबिल बनाया, ये उनकी सफलता है, मेरी मां ने उस ज़माने में गाडिय़ां चलायीं, एक मुसलमान उस्ताद को घर बुलाकर अपनी बेटी को, यानि मुझे, गाना सिखाया, ये उनकी सफलता है। सफलता आपके लक्ष्य पर निर्भर करती है, मेरा लक्ष्य हमेशा से एक अच्छी बहू, पत्नी और मां बनने का था। मैं हमेशा से एक आम जि़न्दगी जीना चाहती थी, जिसमे मैं काफी सफल भी रही हूँ। गायिक मालिनी अवस्थी की तरह मैं हमेशा अच्छा गाना चाहती थी, मेरा लक्ष्य था की जैसा मेरे गुरु, मेरे उस्ताद मुझे सिखाएं मैं वैसा ही गाऊं, इसीलिए मैंने कई बार ऐसे गानों को गाने से इनकार भी कर दिया जो मुझे कला नहीं के मज़ाक जैसे लगे थे। कई लोग ऐसा मानते हैं कि मैं बिहार की हूं, यूपी की नहीं, इसे भी मैं अपनी सफलता ही मानती हूँ।

    * सोन चिरैया के बारे में कुछ बताइए?

सोन चिरैय्या एक मुहिम है। गिरिजा देवी, जिन्होंने मुझे ठुमरी सिखाई, वो भी इस मुहिम से जुड़ी हुई हैं। सोन चिरैय्या में हम लोगों को वर्कशॉप और स्टेज शो के द्वारा लोक संस्कृति सिखाते हैं। अवधी, भोजपुरी, ब्रज, बुन्देलखंडी, रोहेलखंडी, लोक कलाओं, संगीत कथाओं को मंच देते हैं हम, यहां हम उन्ही को सिखाते हैं जो वाकई सीखना चाहते हैं, हाल ही में संगीत नाटक अकादमी ने गुवाहाटी में हमारा तीन दिन का शो करवाया था। सोन चिरैय्या का मतलब ही ये है कि जो संस्कृति खो गयी है, उसे वापस लाया जाए, हमारा लक्ष्य यूपी की विरासत की सारी थातियां वापिस जोडऩा है।

    * गाँव कनेक्शन के बारे में आपका क्या कहना है

मैं अ$खबार को एक मुहिम की तरह देखती हूं, शायद इसकी ज़रूरत बहुत पहले से थी। गाँव की मिट्टी की खुश्बू, गाँव की ज़ु़बान और गाँव के मुद्दे एक समाचार पत्र के ज़रिए लोगों के बीच रखना, बेहद सराहनीय कदम है। जब गाँव कनेक्शन नहीं मिल पाता तो मैं वेबसाइट पर खबरें पढ़ती हूं। गाँव कनेक्शन की पूरी टीम को मेरी तरफ से बधाई।

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