माँ बाप दोराहे पर~ बच्चे चौराहे पर !! संस्कार और समझ

आज के दौर में जब भी अपने चारों और नज़र डालता हूँ तो अपने अनजाने future की तरफ  बेतहाशा भागते हुए मशीनी  बच्चों और नौजवानों को देख कर अजीब सा महसूस होता है,  competition के इस दौर में बच्चे एक robot की तरह से नज़र आने लगे हैं, जो की एक मकसद के लिए ही program किये गए हैं, बड़ी से बड़ी post हासिल करना और बड़ी से बड़ी डिग्री हासिल करना, और इन सब के बीच एक चीज़ लगातार ग़ायब होती जा रही है और वो है उनके संस्कार, और social values के बारे में जानकारी!  जो तहज़ीब और values हमारे बुजुर्गों में थी और लगभग हमारी पीढ़ी तक आने के बाद अब शायद एक बड़ा  gap सा आ गया हैऔर इस gap को बढ़ने में कहीं न कहीं एक माँ बाप के रूप में हम भी इसके कुसूरवार हैं, क्योंकि जो तहज़ीब, संस्कार और social values हमें अपने बुजुर्गों से विरासत में मिली थी हम उनको आगे बढाने में नाकाम होते जा रहे हैं, और इसकी वजह साफ़ तौर पर इस भागम भाग और मार काट वाली प्रतियोगिता ही है ! 


बचपन में परिवारों में बुज़ुर्ग और माँ बाप अपने बच्चों को motivational stories सुनाते थे, बच्चों को अच्छी अच्छी कहानियां और किस्से सुना कर उसमें संस्कार और समझ भरी जाती थी, परिवार से ही उसको काफी बुनियादी बातें और उंच नीच , झूठ और सच, अल्लाह और इश्वर, सबके बारे में किस्से और कहानियों और बातों के ज़रिये, धार्मिक किताबों के ज़रिये ...अच्छी तरह से समझा दिया जाता था, मगर अब यह सब बातें एक black & White फिल्म की तरह से ख़त्म हो सी गयी हैं, इसके लिए देखा जाए तो बदलते हुए दौर, मारा मारी, busy life , कठिन मुकाबला और भी कई बातें ज़िम्मेदार हैं...आज जहाँ nuclear family का दौर चल निकला है, जहाँ माँ बाप और दो बच्चों को ही एक परिवार कहा जाता है, संयुक्त परिवार गायब होते जा रहे हैं, और इसके साथ ही बुजुर्गों की जगह भी ऐसे परिवारों से गायब होती जा रही है, ऐसे Nuclear families में जहाँ माता पिता दोनों ही नौकरी करते हों, और बच्चे घर के नौकरों के हवाले हों, वहां कौन इन नन्हे मुन्नों को यह सारी शिक्षा, संस्कार, तहज़ीब, और social values के बारे में बताये...? और फिर दूसरी बात आजकल के इस दौर में हर आदमी मशीनी हो गया है, हर काम एक सोचे समझे प्रोग्राम के तहत होता है, यहाँ तक की बच्चा भी ...और फिर उसको पैदा होने के बाद कौनसे स्कूल में  registration कराना है, और फिर स्कूल के बाद कौनसे कालेज में, और फिर कितना donation दे कर क्या बनाना है, यह सब उसके पैदा होने से पहले ही program कर लिया जाता है, या पैदा होते ही तय हो जाता है, यानि बच्चा एक computerized रोबोट हो गया, उसकी पूरी लाइफ का प्रोग्राम बना कर उसको उसी software के हिसाब से टाइम टेबल में फिट कर दिया जाता है, और फिर यह मशीनी बच्चा दिन भर एक मशीन की तरह सुबह उठ कर, टिफन लेकर स्कूल, फिर tuition , फिर yoga क्लास, फिर swimming , फिर जुडो क्लास, फिर घर आकर होम वर्क, और फिर थक कर सो जाना....! 

माता पिता बच्चे से चाह कर भी फुर्सत से बैठ कर बात नहीं कर सकते क्योंकि वैसे तो खुद उनके पास ही वक़्त नहीं है, और अगर है...तो फिर बच्चों के पास नहीं है, क्योंकि अगर बच्चों को वक़्त मिलता है तो उसके लिए मनोरंजन के इतने साधन हैं कि वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होगा...हमारे समय में बुज़ुर्ग फुर्सत के वक़्त हमें अपनी ज़िन्दगी का निचोड़ और अच्छी अच्छी बातें बताते थे, पढने को अच्छी अच्छी किताबें और कामिक्स हुआ करती थीं, मगर आज के बच्चों के पास मनोरंजन के  लिए कंप्यूटर game हैं, इन्टरनेट है, विडिओ गेम हैं, मोबाइल है, और उसकी दुनिया भी यही है...! 

अब ऐसे बच्चों को कैसे किसी अच्छी और बुरी बात के बारे में या संस्कार और social values के बारे में तरीके से बताया जाए, यह लोग अपनी विरासत से दूर होते जा रहे हैं, अच्छा क्या है, बुरा क्या हैसमझने का वक़्त नहीं है, और अगर वक़्त कभी निकल भी आये तो माता पिता के पास वक़्त नहीं होता, जबकि हर माता पिता यही चाहता है कि वो अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाये और उसको हर अच्छी बुरी बातों से   परिचित कराया जाए, मगर इस competition भरे  दौर की मारा मारी में सब ख्याल कहीं दब कर रह जाते हैं, माता पिता अपने नौकरी और घर के बीच balance बनाते बनाते एक pendulum कि तरह हो रहे हैं, और बच्चे अपने आप को इस दौर के लायक बनाने के लिए पढ़ाई, इन्टरनेट, coaching , Jim ,  योगा की क्लास  के गोल गोल पहिये में घूम रहा है, एक चमकीले future और अच्छी  नौकरी, और एक बेहतरीन ज़िन्दगी के लिए लगातार हर दिशा में दौड़ लगा रहा है..और इस भाग दौड़, competition , और आपा धापी में इनका नन्हा बचपन कही कुचल कर रह गया है...! 

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