क्या जीवन में पैसा सबसे महत्वपूर्ण है?

जानिए आपके जीवन में कितना महतवपूर्ण है पैसा

क्या जीवन में पैसा सबसे महत्वपूर्ण है?  


हम में बहुत से लोग हर सुबह ऐसी नौकरी पर जाने के लिए तैयार होते हैं जिसमे हमें ख़ुशी नहीं मिलती। या तो काम हमें अनाकर्षक लगता है, या नौकरशाही और राजनीति के चलते आप मजबूरी में फंसे हुए हैं।

 वास्तव में आप महीने के अंत में आय के रूप में मिलने वाले चेक के लिए काम कर रहे हैं। कभी, हमें उन पैसों की जरूरत होती है, कभी कम पैसों में हम काम कर सकते हैं।
 तब हम क्यों ऐसे काम करते रहते हैं, जो हमें हमारी पसंद का काम नहीं करने देता?
 इसका कारण वह प्रसिद्ध धारणा है, कि "हम तभी खुश रहेंगे जब हमारे पास धन होगा" 
हम इस धारणा को हर जगह देखते हैं : बहुत से उत्पादों के विज्ञापनों में ये बताया जाता है कि जब आप इन उत्पादों को खरीदेंगे तो आप खुश हो जायेंगे - और इन उत्पादों को खरीदने के लिए...... धन का लगातार प्रवाह होना चाहिए।


इस धारणा को बल देने वाला दूसरा पहलू यह है कि, हम ये सोचते हुए बड़े होते हैं कि, हर महीने अच्छा वेतन मिलने से कार्यकाल के समाप्ति तक बहुत सारी बचत हो जाएगी जो हमारे संतोषजनक सेवानिवृति के बाद काम आएगी।
तो क्या हम ख़ुशी के लिए पैसा चाहते हैं ? 
देखा गया है कि पैसे का हमारी खुशियों पर क्षणिक प्रभाव होता है, या हम कह सकते हैं, पैसा हमें सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही ख़ुशी देता है - बिलकुल वैसे ही जैसे आज आपने खरीददारी की, आपकी ख़ुशी तभी तक रहेगी जब तक आप कोई नया विज्ञापन देख कर फिर से खरीददारी का नहीं सोचने लगते।

यदि अगर आपकी आमदनी बहुत ज्यादा या बहुत काम है, तो पैसा बहुत ज्यादा अंतर् पैदा करता है- अत्यन्त समृद्ध या अत्यन्त गरीब। उस स्थिति में जिनके पास बिलकुल भी पैसा नहीं है वे निश्चित ही उनकी अपेक्षा बहुत ज्यादा दुखी होंगे जो करोडपति हैं।
लेकिन अधिकांश लोग इन ध्रुवों पर नहीं होते, विशेष रूप से उन देशों में जिनकी जीडीपी प्रति वर्ष बढ़ रही है, तो मध्य वर्ग के लिए यह विचार का मसला होता है।
 यही विचार हमें जॉब में लगाए रखता है, जहां हमारी सारी क्रिएटिविटी ऑफिस पॉलिटिक्स की भेंट चढ़ जाती है। लोग स्वयं को धनी लोगों के बराबर खुश बनाने की मृगतृष्णा के चक़्कर में एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में लगे रहते हैं।
सीनियर पोजिशन पर लोगों को भत्ते दिए जाते हैं, जो प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या को बढ़ाता है। इसका परिणाम क्या होगा? तनाव, चिंता, अवसाद, संतुष्टि के स्तर में कमी हमे सहज रूप में कार्य स्थल पर महसूस हो सकती है।
और स्वाभाविक रूप से हम अपने साथ इसके प्रभाव (खराब मूड और काम का बोझ) अपने घर और दोस्तों के बीच ले जाते है, जो ऑफिस के बाहर हमारी लाइफ को बदरंग बना देता है। 
तो इसका समाधान क्या है? आप जिस प्रकार के काम को पसंद करते हैं उस प्रकार के कार्य करने वाली कम्पनी को ज्वाइन करें या अपना खुद का स्टार्ट-अप शुरू करें ! स्टार्ट-अप पारम्परिक कम्पनियों की तुलना में, पूरे विश्व में नए रोजगार के अवसर सृजन, करा रहे हैं। या अपने रूचि के क्षेत्र में शुरुवात करें।

भारत में बहुत से इंजीनियर्स नौकरी छोड़ कर सामाजिक या मीडिया के क्षेत्र में शामिल हो रहे है। इसमें कभी देर नहीं होती ! तो संक्षेप में, यदि पैसा नहीं तो क्या हम संतुष्ट रहते हैं? यह किन कामों में आप कितना समय बिताते हैं, इस पर निर्भर करता है। अगर आपके लिए ख़ुशी का मतलब है किताबें पढ़ना, और अपनों के साथ समय बिताना है और आप काम, उससे जुड़े मसलों, और जॉब में अधिक समय बिताते हैं (क्योंकि ज्यादा आय का मतलब ज्यादा जिम्मेदारियां) तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आप खुश नहीं रहते। अपनी रूचि का कार्य करिये, और धन अपने आप आप कमाने लगेंगे ।

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