आयुर्वेद दिनचर्या : सुबह जल्दी उठने की महिमा
स्कृत में दैनिक कार्यकम को दिनचर्या कहते हैं| दिन का अर्थ है दिन का समय और अचार्य का अर्थ है उसका पालन करना या उसके निकट रहना| दिनचर्या आदर्श दैनिक कार्यक्रम है जो प्रकृति के चक्र का ध्यान रखती है| आयुर्वेद प्रातः काल के समय पर केंद्रित होता है क्योंकि वह पूरे दिन को नियमित करने में महत्वपूर्ण है|
प्रातः काल में सरल दिनचर्या का पालन करने से आप की दिन की शुरुआत आनंदमय होती है| आपकी सुबह ताज़गीमय होने के लिये यह मार्गदर्शिका है |
1. ब्रह्म मुहूर्त |Brahma muhurata सूर्योदय से डेढ़ घंटे पूर्व उठने से आप सूर्य की लय के साथ समकालिक हो सकते हैं | आयुर्वेद ब्रह्म मुहूर्त की अनुशंसा करता है जिसका अर्थ है ब्रह्म का समय या शुद्ध चेतना या शुभ और प्रातः काल के इस समय उठना सर्वश्रेष्ठ माना गया है |
सूर्योदय से देड घंटे पूर्व वातावरण में विशाल ऊर्जा की गति भर जाती है| फिर सूर्योदय के आधे घंटे पूर्व दूसरी ऊर्जा की धूम वातावरण में भोर करती है| आशा, प्रेरणा और शांति इस समय प्रकट होती है| यह समय ब्रह्म ज्ञान (ध्यान और स्वाध्याय ), सर्वोच्च ज्ञान और शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है| इस समय वातावरण शुद्ध,शांत और सुखदायक होता है और निद्रा के उपरांत मन में ताज़गी होती है |
इस समय ध्यान करने से मानसिक कृत्य में सुधार होता है| यह सत्वगुण बढ़ाने में सहायक है और रजोगुण और तमोगुण से मिलने वाली मानसिक चिडचिडाहट या अति सक्रियता और सुस्ती से निदान देता है |
2. श्वास की शक्ति |Power of Breath यह देखे कि कौनसी नासिका से श्वास का प्रवाह अधिक है| आयुर्वेद के अनुसार दाहिनी नासिका सूर्य पित्त है और बाईं नासिका चंद्र पित्त है| मस्तिष्क का दाहिना भाग रचनात्मक कार्यों को नियंत्रित करता है और बायां हिस्सा तार्किक और मौखिक कृत्यों को नियंत्रित करता है| शोध के अनुसार जब कोई बाईं नासिका से श्वास लेता है तो मस्तिष्क का दाहिना भाग अधिक हावी होता है और इसका विपरीत भी|
3. सकारात्मक तरंगे |Positive Vibrations प्राचीन परंपरा का पालन करते हुये अपने हथेली की रेखाओं को देखे और धन, ज्ञान और शक्ति की देवियों को याद करे| उंगलियों के ऊपर के भाग को अंगूठे से गोलाकार सुखदायक लय में घिसे – दाहिना दक्षिणावर्त गोलाकार और बायां वामावर्त गोलाकार लय में| हथेली को उंगली के ऊपर के भाग से घिसे और दाहिनी कलाई को दक्षिणावर्त लय में घुमाये और बायीं कलाई को वामावर्त लय में घुमाये| शरीर के जिस भाग में श्वास का प्रवाह अधिक हो पहले उस भाग की हथेली को चूमे और फिर दूसरी हथेली को चूमे| (चुंबन ऊर्जा प्रदान करती है| अपनी हथेली को चूमने से आप अपने सबसे प्रभावकारी शस्त्र आत्म अभिव्यक्ति को उत्तम कंपन प्रदान करते हैं|) अपने दोनों हाथों को घिसे फिर दोनों हथेली को धीरे धीरे चेहरे, सिर,कंधे,हाथ और पैरों की ओर ले जाये जिससे ऊर्जा का एक कवच निर्मित हो जाता है और पूरे दिन नकारात्मक प्रभाव से संरक्षण मिलता है |
4. रक्षा मंत्र |Protection Mantra रक्षा मंत्र का मंत्रोचारण करे जो इस सरल लेकिन प्रभावकारी सुबह की दिनचर्या का हिस्सा है| मंत्रोचारण के उपरांत कुछ क्षण शांत और खाली मन के साथ बैठे|
कर अग्रे वसते लक्ष्मी
(हाथों के आगे भाग में अर्थात उंगली के ऊपर के भाग में धन की देवी लक्ष्मीजी का वास होता है|)
कर मध्ये च सरस्वती
हाथ में मध्य भाग में अर्थात हथेलियों में कला और ज्ञान की देवी सरस्वती का वास होता है|)
कर मुले वसते गोविंदम
5. सकारात्मक कदम |Positive Step बिस्तर छोड़ते समय नासिका के जिस भाग में श्वास का प्रवाह तेज या हावी हो उस भाग के पैर को जमीन पर पहले रखे|
6. सफाई |Clean Up ठंडे पानी से कुल्ला कर ले| जल विद्युत कंडक्टर होता है और संवेदनशील ऊतकों में कभी भी जलन पैदा नहीं कर सकता| ठंडे पानी से हाथ,चेहरा ,मुंह और आँखों को धो ले| नाक,दांत और जीभ को साफ कर ले|
7. ध्यान और व्यायाम |Meditate and Exercise विश्राम से – प्राणायाम तब तक करे जब तक दोनों नासिकाओं से श्वास बराबरी से प्रवाहित होना शुरू हो जाये| अपनी ऊर्जा को ह्रदय के चक्र या तीसरी आँख की ओर केंद्रित करके ध्यान करे| छोटी और धीमी गति से सुबह की ताज़ी हवा में चले|अपने आप को सरल और सुखदायक दृश्यों में घेर ले खास तौर सफेद वस्तुओं जैसे ताज़े और सुगंधदार फूल जिनके सूक्ष्म रंग हो|
व्यायाम या शारीरक कसरत में सामान्यता कुछ योग मुद्रायें होती है जैसे सूर्यनमस्कार और श्वास प्रक्रियायें जैसे नाड़ीशोधन प्राणायाम| लेकिन इसमें सैर करना और तैरना भी सम्मलित हो सकता है| सुबह के व्यायाम से शरीर और मन की अकर्मण्यता समाप्त होती है, पाचन अग्नि मजबूत होती है, वसा में कमी आती है| आपके शरीर में अच्छे प्राण की वृद्धि हो जाने से आपको हल्केपन और आनंद की अनुभूति होती है| घोर परिश्रम वाले व्यायाम की तुलना में आपकी १/४ या १/२ क्षमता के अनुसार ही व्यायाम करने की अनुशंसा की जाती है