Heart_Touching story दिल को छु लेने वाली एक ऐसी कहानी

Heart_Touching..❤️❤️   Story  

Heart_Touching story दिल को छु लेने वाली एक ऐसी कहानी



 जब डॉक्टर ने ये बताया था ना , बधाई हो बेटी हुई है । मैंने लड्डू बांट दिए थे पूरे अस्पताल में क्योंकि मुझे शिखा ( पत्नी) जैसी बेटी ही चाहिए थी ।जब चलती थी ना तो उसके छोटे छोटे पैरों की पायल की गूंज पूरे घर में दौड़ जाती थी ।मुझे याद है उसने पहली बार जब पापा बोला था। कितना खुश था मैं । मैंने उसे अपने गोद में उठा लिया घंटों में उससे बोलता रहा , बेटा पापा बोलो , पा.....पा ,पा......पा और वो गर्दन मटकाने लगती । मैं उसकी हर नादानी पर बहुत हंसता ।
जब वो पांचवी में थी उसने पापा के ऊपर निबंध लिखा । उसने लिखा मेरे पापा हीरो है ।जो उसने अपने शब्दों में लिखा था , दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है जो पापा मेरे लिए नहीं ला सकते और ऐसा कोई काम नहीं जिसे पापा नहीं कर सकते । मेरे पापा अलादीन के चिराग हैं ।
मैंने न जाने कितनी बार उस निबंध को पढ़ा । जब भी मैं उसे पढ़ता तो मुझे एक सफल पिता की झलक उसमें दिखती अपनी मां की चुन्नी ओढ़कर अक्सर मुझे खाना बनाकर खिलाती । धीरे धीरे मेरी प्लास्टिक की गुड़िया दादी अम्मा बन गई ।मैं उसमें अपनी मां की छवि देखता ।हर बात पर मुझे डांटना ।,
"पापा आप ऐसे क्यों करते हो ?पापा आप ऐसे क्यों नहीं करते ? इतने सवाल उसके हर सवाल को मजाक में उड़ा दिया करता । जब कभी सफाई करती पोछा लगाती है मैं उसकी पोचे के अंदर अगर चप्पल पहन कर आ जाता तो मानो मेरी मां ही मुझे डांट रही हो गुस्से में पापा मैंने पोछा लगाया है । मैं बोल देता बेटा मुझे नजर नहीं आया था। पापा आप रोज ऐसे ही करते हो । अच्छा , अच्छा अब नहीं करुंगा । मैंने उससे कहा था ।

 तुम आर्ट ले लो कॉलेज में उसने कहा नहीं मुझे साइंस पढ़नी है । साइंस की सुविधा हमारे शहर में नहीं थी ,दूसरे शहर मैंने उसे पढ़ने के लिए भेजा ।सचमुच जिस दिन वो जा रही थी ना मैं रोया था । शिखा ने मुझे समझाया ," अभी तो बेटी कॉलेज जा रही है । आप अभी से इतना रो रहे हैं ।जिस दिन ससुराल जाएगी उस दिन कितना रोयेंगे ?" अब कॉलेज भी पूरा हुआ । तलाश एक अच्छे लड़के की जो मेरी बेटी को मेरी तरह खुश रख सके। उसके लिए मैं कोई भी कीमत देने के लिए तैयार था ।अच्छे से अच्छा घर ,अच्छे से अच्छा परिवार मैं उसके लिए देखना चाहता था । मैंने एक आलीशान घर में उसका रिश्ता तय किया ।जहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी ।मुझे लगा कि मेरी बेटियां सुख से रहेगी । क्या हुआ जो मैं अपनी सारी FD तुड़वा दूंगा ।क्या हुआ जो मैंने अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचा कर नहीं रखा है । उसे भी मैं उसकी झोली में डाल दूंगा लेकिन उसके लिए तो खुशियां खरीद लूंगा ना ।और मैंने खरीद लीं उसके लिए खुशियां ।शादी वाले दिन जब वो गहना जेवरों से लदी हुई थी तो मैं सारे दुख भूल गया था कि मैंने अपने लिए एक पाई भी नहीं छोड़ी है । उसकी विदाई के समय मैं बहुत रोया , बहुत ज्यादा ।उसकी गाड़ी जब बारात घर से निकली तो बाहर मैं घंटों खड़ा होकर रोया ।मुझे नहीं पता था मेरी चिड़िया 1 दिन ऐसे उड़ जाएगी मेरे घोसले से ।उसकी भी आंखें जहां तक गाड़ी मुड़ी मेरे ऊपर ही टिकी थीं । मैंने संभाल लिया खुद को आखिर यही नियम है ।

बेटी को एक दिन अपने घर जाना ही है। उसके जाने के बाद भी उसको भूलना नामुमकिन था ।जब भी चप्पल पहनकर अंदर आता ना तो मुझे गुड़िया याद आती । जब भी अपनी प्रेस के कपड़े ढूंढता तो मुझे गुड़िया याद आती । जब भी एक कप चाय पीने का मन होता तो मुझे गुड़िया याद आती ।जब भी शिखा मुझे डांटती तो मुझे गुड़िया याद आती , कैसे मैं हंसकर कह दिया करता था देखो गुड़िया तुम्हारी मम्मी मुझे डांट रही है । जब भी मैं कुछ भारी समान बाजार से लेकर आता तो मुझे गुड़िया है याद आती , कैसे वो गेट पर आते ही मेरा सामान मेरे हाथ से ले लिया करती । जब भी बाजार में रखे हुए अंगूर देखता तो मुझे गुड़िया याद आती क्योंकि उसे अंगूर बहुत पसंद थे । फिर अपने आपको समझाता पागल हो गया है क्या रामेश्वर ? तूने अपनी जीवन भर की कमाई क्या इसलिए खर्च की है कि तेरी बेटी अंगूर के लिए तरसे ।उसे किस बात की कमी। हर मौके पर मुझे उसकी याद आती शायद वो भी मुझे इतना ही याद करती होगी । हां दिखाती नहीं है । जब घर आती , तो मैं छुपकर उसे संतुष्टि से 5 , 10 मिनट पहले देखता था । उसका चेहरा पढ़ता । वो खुश तो है ना । उसकी मुस्कुराहट में जैसे मैं उसकी यादों को भुला देना चाहता था , पर न जाने क्यों ? उसे देख कर लगता है बहुत कमजोर हो गई है । कई बार मैंने उससे पूछा , अपने पास प्यार से बिठाकर बेटा कुछ कमजोर लग रही हो तो उसने बनावटी हंसी हंसते हुए कहा ," पापा ये तो फैशन है जो जितना पतला होगा उतना ही ज्यादा सुंदर दिखेगा ।" और कमजोर और उदास और गंभीर वो दिन पर दिन होती चली गई और फैशन का मुखौटा पहना कितनी आसानी से उसने मुझे पागल बना दिया ।

मैं कैसे नहीं देख पाया उसके दर्द को ।आज मेरी गुड़िया मेरे सामने वाले कमरे में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है । उसने अपने बाप से पैसा मांगने की बजाय खुद को फांसी लगाना ज्यादा बेहतर समझा । यहां तक कि अपने करीबी दोस्त को भी मना कर दिया , उसके पापा तक ये बात ना पहुंचे की ससुराल में वो कैसे रहती है ? क्यों नहीं आई वो मेरे पास । वो जो हर चीज के लिए मेरे पास आती थी । उसने क्यों नहीं कहा , पापा मुझे इस नर्क से निकाल लो ।मैं उसे कभी नहीं रहने देता वहां । चाहे मैं खुद बिक जाता , पर मैं उसे वहां से निकाल लेता । क्या करूंगा मैं उसके लिए अब लड़कर जब वो नहीं रहेगी ? मैं हर बड़ी से बड़ी लड़ाई लड़ता उसके लिए उसने क्यों नहीं समझा मुझे इस लायक । पुलिस के फोन से पहले काश उसका फोन आया होता ,"पापा अब मैं इस घुटन में नहीं जी सकती " तो मैं उसे समझाता बेटा मैं हूं ना । जब तक मैं हूं , तब तक दुनिया में कोई ऐसा दुख नहीं है जो तुम्हें छू सके । वो क्यों भूल गई कि उसके पापा अलादीन के चिराग हैं!