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ऐसे बनो की लोगो को रास्ता दिखा पाओ

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इस स्टोरी में आपको 2 मेसेज देने वाला हु |  ऐसे बनो की लोगो को रास्ता दिखा पाओ  ये स्टोरी है दो घोड़ो के बारे में है जो ये दो घोड़े है बहुत ही अच्छे बेस्ट फ्रेंड् होते है | एक पास बात यह होती है की एक ऐसा घोडा होता है जो बचपन से अँधा होता है | और जो दूसरा घोडा होता है उसके गले में घंटी बंधी होती है जब साम को जगत से वापिस आना होता है वो आगे -आगे  चलता है और हो घोडा अँधा होता वो उसको फॉलो करता है ( उसकी घंटी की की आवाज सुनकर ) जो दूसरा वाला वो भी उस घोड़े की की तरह बन चूका है जो हमे रास्ता दिखाता है हम घंटी की आवाज सुनते रहते है | बुत हम अंधे हो चुके हो | हमे नहीं पता की सही रास्ता क्या है ? पर ऊपर वाला हमे सही रास्ता दिखाता हाउ उस घंटी की आवाज आपको सुनाई दे रही है | अगर आपको सुनाइ नही दे रही है तो उसको ध्यान से सुनो वो गह्न्ति की आवाज जरुर सुनाई देगी | और ऊपरवाला आपको सही रास्ता दिखायेगा ये था पहला मेसेज आप उस घोड़े की तरह बनो जिसके गले में घंटी है मतलब आप ऐसे बनो क आप लोगो की रास्ता दिखा पाओ जो लोग अंधे हो चुके है जिन्हें ज़िन्दगी जीने के सही मायना नही पता है

विदेश में 45 लाख रुपये सलाना की नौकरी छोड़ बने किसान, आज खेती में कमा रहे अच्छा मुनाफा !!!!!!!!

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लखनऊ : आज कई लोगों का मानना है कि खेती अब फायदे का सौदा नहीं है। किसान अपनी कड़ी मेहनत से अगर फसल पैदा भी कर लेता है तो कहीं फसल खराब मौसम के कारण या फसल रोग या अन्य कारणों से उत्पादन अच्छा नहीं दे पाती है। ऐसे ही अन्य कई कारण हैं, जिस वजह से वे खेती-किसानी को अब मुनाफे का सौदा नहीं मानते हैं और कृषि छोड़कर शहरों में नौकरी करने के लिए पलायन करते हैं। मगर आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताते हैं कि जो विदेश में नौकरी कर 45 लाख रुपये वार्षिक कमाता था, बावजूद इसके उन्हें नौकरी रास नहीं आई और चार साल बाद नौकरी छोड़कर खेती करने के लिए अपने गाँव वापस चला आया।  आज यही शख्स अपने गाँव में न केवल खेती से लाखों का मुनाफा कमाता है, बल्कि अपने बेटे के इस फैसले से उसके माता-पिता भी बहुत खुश हैं। कतर के सरकारी तेल कंपनी में लगी नौकरी...... यह शख्स हैं रायपुर के बागबाहरा क्षेत्र के चारभांठा गाँव निवासी मनोज नायडू। मनोज नायडू ने मेटलर्जिकल (मेटल से संबंधित इंजीनियरिंग) इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। इंजीनियरिंग करने के बाद मनोज की नौकरी सऊदी अरब के कतर में एक सरकारी तेल कंपनी

एम्स ने कैंसर होने के कारण बताये हैं :-

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एम्स ने कैंसर होने के कारण बताये हैं :-   पालीथीन में गरम सब्जी कभी भी पैक न करवाऐं। चाय कभी भी प्लास्टिक के कप में न लें। कोई भी गरम चीज प्लास्टिक में न लें , खासकर भोजन। खाने की चीजों को माइक्रोवेव में प्लास्टिक के बर्तन में गर्म न करें।  याद रखें जब प्लास्टिक गर्मी के संपर्क में आता है तो ऐसा रसायन उत्पन करता है जो 32 प्रकार के कैंसर का कारण है। डा० हार्दिक शाह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) सामान्य अस्पताल (Civil Hospital) मुम्बई द्वारा यह संदेश भारत में कार्यरत डाक्टरों के समूह से है, जिसको आम जनता के हित में भेजा जा रहा है । 1) कृपया APPY FIZZ का सेवन न करें, क्योंकि इसमें कैंसर पैदा करने वाले रसायन है ।  2) कोक या पेप्सी सेवन करने से पहले व बाद में मेन्टोस का सेवन न करें क्योंकि इसका सेवन करने से मिश्रण साईनाइड में बदल जाता है, जिससे सेवन करने वाले व्यक्ति की मौत हो सकती है ।  3) कुरकुरे का सेवन न करें क्योंकि इसमें प्लास्टिक की काफ़ी मात्रा होती है । इसकी पुष्टी के लिये कुरकुरे को जलायें तो देखेंगे कि प्लास्टिक पिघलने लगा है –टाइम्स आफ़ इण्डिया की रिपोर्ट

एक कहानी ऐसी भी

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एक गरीब परिवार में एक सुन्दर सी बेटी ने जन्म लिया.. बाप दुखी हो गया बेटा पैदा होता तो कम से कम काम में तो हाथ बटाता,, उसने बेटी को पाला जरूर, मगर दिल से नही.... वो पढने जाती थी तो ना ही स्कूल की फीस टाइम से जमा करता, और ना ही कापी किताबों पर ध्यान देता था... अक्सर दारू पी कर घर में कोहराम मचाता था....... उस लडकी की मॉ बहुत अच्छी व बहुत भोली भाली थी वो अपनी बेटी को बडे लाड प्यार से रखती थी.. वो पति से छुपा-छुपा कर बेटी की फीस जमा करती और कापी किताबों का खर्चा देती थी.. अपना पेट काटकर फटे पुराने कपडे पहन कर गुजारा कर लेती थी, मगर बेटी का पूरा खयाल रखती थी... पति अक्सर घर से कई कई दिनों के लिये गायब हो जाता था. जितना कमाता था दारू मे ही फूक देता था... वक्त का पहिया घूमता गया. बेटी धीरे-धीरे समझदार हो गयी.. दसवीं क्लास में उसका एडमीसन होना था. मॉ के पास इतने पैसै ना थे जो बेटी का स्कूल में दाखिला करा पाती.. बेटी डरडराते हुये पापा से बोली: पापा मैं पढना चाहती हूं मेरा हाईस्कूल में एडमीसन करा दीजिए मम्मी के पास पैसै नही है... बेटी की बात सुनते ही बाप आग वबूला हो गया और चिल्लाने

नहाने का वैज्ञानिक तरीका-

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नहाने का वैज्ञानिक तरीका-  क्या आपने कभी अपने आस पास ध्यान से देखा या सुना है कि नहाते समय बुजुर्ग को लकवा लग गया? दिमाग की नस फट गई ( ब्रेन हेमरेज), हार्ट अटैक आ गया | छोटे बच्चे को नहलाते समय वो बहुत कांपता रहता है, डरता है और माता समझती है की नहाने से डर रहा है, लेकिन ऐसा नहीँ है; असल मे ये सब गलत तरीके से नहाने से होता है । दरअसल हमारे शरीर में गुप्त विद्युत् शक्ति रुधिर (खून) के निरंतर प्रवाह के कारण पैदा होते रहती है, जिसकी स्वास्थ्यवर्धक प्राकृतिक दिशा ऊपर से आरम्भ होकर नीचे पैरो की तरफ आती है। सर में बहुत महीन रक्त् नालिकाये होती है जो दिमाग को रक्त पहुँचाती है। यदि कोई व्यक्ति निरंतर सीधे सर में ठंडा पानी डालकर नहाता है तो ये नलिकाएं सिकुड़ने या रक्त के थक्के जमने लग जाते हैं और जब शरीर इनको सहन नहीं कर पाता तो ऊपर लिखी घटनाएं वर्षो बीतने के बाद बुजुर्गो के साथ होती है। सर पर सीधे पानी डालने से हमारा सर ठंडा होने लगता है, जिससे हृदय को सिर की तरफ ज्यादा तेजी से रक्त भेजना पड़ता है, जिससे या तो बुजुर्ग में हार्ट अटैक या दिमाग की नस फटने की अवस्थ

सरकारी स्कूलों में सुविधाओं का अभाव

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सरकारी स्कूलों में सुविधाओं का अभाव सर्दी , गर्मी और बारिश कोई भी मौषम हो पेड़ो के नीचे लगती है क्लास इसका ज़िमेदार कोन है स्कुल , गांव वाले , नेता या सरकार पता नही जो भी हो लेकिन नुकसान सिर्फ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का है । हालांकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सबसे बड़ी समस्या है, जहां प्रशिक्षित शिक्षकों की दशा और उनके चयन प्रणाली में गड़बड़ी से सभी परिचित हैं और यहां छात्र-छात्राओं के लिए अन्य सुख-सुविधाओं की बात करना ही व्यर्थ है। शिक्षा देना दूर, कई बार तो बच्चों को दोपहर का भोजन (मिड डे मील) खाकर भी जान से हाथ धोना पड़ जाता है। शिक्षा क्षेत्र के स्तर में सुधार के लिए अब तक के सरकारी प्रयास को नगण्य ही कहा जा सकता है। शायद यही कारण है कि वर्तमान में गरीब और लाचार अभिभावक भी बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छा माहौल व अच्छी सुविधा के लिए निजी स्कूलों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।  ऐसे हालात में कल्पना की जा सकती है कि भारत सरकार द्वारा संचालित स्कूलों के स्तर को सुधारने में कितना वक्त लगेगा और उसे एक मॉडल स्तर तक पहुंचाने में कितनी बड़ी निवेश की ज

बुटाटी धाम नागौर

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बुटाटी धाम नागौर बुटाटी धाम आस्था का केंद्र बुटाटी धाम आस्था का केंद्र एक मंदिर ऐसा भी है जहा पर पैरालायसिस (लकवे ) का इलाज होता है ! यहाँ पर हर साल हजारो लोग पैरालायसिस(लकवे ) के रोग से मुक्त होकर जाते है यह धाम नागोर जिले के कुचेरा क़स्बे के पास है, अजमेर- नागोर रोड पर यह गावं है ! लगभग ५०० साल पहले एक संत होए थे चतुरदास जी वो सिद्ध योगी थे, वो अपनी तपस्या से लोगो को रोग मुक्त करते थे| मन्दिर में नि:शुल्क रहने व खाने की व्यवस्था भी है| लोगों का मानना है कि मंदिर में परिक्रमा लगाने से बीमारी से राहत मिलती है| राजस्थान की धरती के इतिहास में चमत्कारी के अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं| आस्था रखने वाले के लिए आज भी अनेक चमत्कार के उदाहरण मिलते हैं, जिसके सामने विज्ञान भी नतमस्तक है| ऐसा ही उदाहरण नागौर के 40 किलोमीटर दूर स्तिथ ग्राम बुटाटी में देखने को मिलता है। लोगों का मानना है कि जहाँ चतुरदास जी महाराज के मंदिर में लकवे से पीड़ित मरीज का राहत मिलती है। सन्त चतुरदास जी महाराज के मन्दिर ग्राम बुटाटी में लकवे का इलाज करवाने देश भर से वर्षों पूर्व हुई बिमार

ज़िन्दगी की सच्चाई बताते दादा जी के दस सबक

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अभिषेक की दादा जी उसे बहुत मानते थे और बचपन से ही उसका ख़याल रखते थे। दादा जी की एक आदत थी कि वे हमेशा अपने साथ एक डायरी लेकर चलते थे। अभिषेक अक्सर उन्हें ऐसा करते देखता और पूछता , “ दादा जी … बताइए न आप इस पर क्या लिखते हैं ?” दादा जी उसकी बात हँस कर टाल देते और कहते , “ तू नहीं समझेगा …” अभिषेक अब बड़ा हो चुका था और दादा जी करीब 90 वर्ष की हो चुके थे। उस रात भी सभी लोगों ने साथ खाना खाया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए ….. पर दादा जी ने अगली सुबह नहीं देखी … उनका देहांत हो चुका था। अभिषेक के लिए ये किसी सदमे से कम नहीं था , वह फूट-फूट कर रोया , दादा जी के साथ बिताया एक-एक पल उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगा! अंतिम संस्कार के बाद जब अभिषेक उनके कमरे में गया तो उसकी नज़र उस डायरी पर पड़ी … अभिषेक पन्ने पलटने लगा … आखिरी पन्ने पर लिखा था: ये मेरे लाडले अभिषेक के लिए — अभिषेक ने पढना शुरू किया- बेटा अभिषेक तू हेमशा पूछता था न मैं इस डायरी में क्या लिखता हूँ …. तो आज मैं तुम्हे कुछ बताना चाहता हूँ …. आज मैं तुम्हे अपने जीवन के अनुभव का निचोड़ देना चाहता हूँ ….

सभी में छुपी है काबिलियत -अपनी काबिलीयत को पहचानो और अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ो..

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सभी में छुपी है काबिलियत किसी गाँव में एक तालाब हुआ करता था। उस तालाब के किनारे कुछ गुलाब के फूल उगे हुए थे।सुबह सुबह गाँव के सभी लोग बूढ़े, बच्चे, महिलाएं, आदमी सभी तालाब किनारे घूमने आया करते थे। वो गुलाब के फूल हर किसी का मन मोह लेते थे। जिस किसी की भी नजर उन फूलों पर पड़ती वो उनकी सुन्दरता की तारीफ करते नहीं थकता था। उन्हीं फूलों में लगे पत्ते रोज ये सब देखते और उनको लगता कि कभी तो कोई उनकी भी तारीफ करेगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, लोग आते और गुलाब के फूलों की ही तारीफ करते और पत्तों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाता था। अब पत्ते ये सोचने लगे कि भगवांन ने सब कुछ तो इस फूल को दिया है तो फिर इस दुनिया में हमारा क्या काम ? हम इस दुनिया में क्यों आये हैं ? ये सब सोचकर पत्ते मायूस हो जाते कि हमारे जीवन का कोई मोल नहीं है और हमारे अंदर फूल की तरह कुछ विशेष बात भी नहीं है। समय गुजरता गया, एक दिन गाँव में बड़ी तेज आंधी आयी। थोड़ी ही देर में उस आंधी ने तूफान का रूप ले लिया। तेज हवा से सारे फूल और पत्ते झड़ कर नीचे गिर गए। एक पत्ता झड़कर पानी में गिरा, वो पानी में तैर रहा था कि उसकी नजर एक

। कुछ भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे। :)

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मेरे आसपास की महिलायें ( चाची , ताइजी , अम्मा , बुआजी , और मेरी माँ भी ) जो आधी उम्र गुज़रने के बाद भी उन गलियों , मौहल्लों , बाजारों और आसपड़ोस के घरों को नहीं घूम पायीं , जहाँ सालों पहले ब्याह कर आई थीं। घूमती भी कैसे !! बुलावा ( बुलौआ ) और आसपास के मंदिरों तक जाने के लिए जिन्हें नाक तक पल्लू खिसकाए और साड़ी को हाथ से जरा ऊँचा उचकाए चलना पड़ा हों , वो कैसे ठीक - ठीक देख पाती कुछ भी ?? पर पिछले 2-3 सालों में वही महिलायें बहुत से दायरे लाँघकर , आत्मविश्वास से भरी हुयीं दिखती हैं।   कुछ भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे।   :)   और उन बच्चों , पतियों की मेहनत भी , जो उन्हें इस दुनिया में लाये , उन्हें सिखाया और समझाया। यही वजह है कि बहुत कुछ बदला - बदला सा नजर आता है अब...गालियाँ , मोहल्लें , बाजार भले भी अब भी ना खंगाले गए हों लेकिन उनकी ज़िन्दगी और रहन , सहन का तरीका बहुत बदला है। जो कल तक बुलावा जाने से पहले बताशा भरने के लिए सबसे जरुरी चीज हाथ में रुमाल होना समझती थीं , वो आज घर से निकलते हुए पूछती हैं " अरे मोबाइल कहाँ रख दिया मैंने "   :)   इस बात से भी इ

11 साल का ये बच्चा स्कूल चलाता है, 100 से भी ज्‍यादा बच्‍चे पढ़ने आते हैं

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11 साल का ये बच्चा स्कूल चलाता है , 100 से भी ज्‍यादा बच्‍चे पढ़ने आते हैं आमतौर पर स्‍कूल से आने के बाद हर बच्‍चा टीवी पर कार्टून देखता है , खेलने चला जाता है या फिर अपना होमवर्क करने में बिजी हो जाता है. लेकिन उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ में एक ऐसा भी बच्‍चा है जिसकी आदतें आम बच्‍चों से जुदा हैं. लखनऊ का रहने वाला 11 साल का आनंद कृष्‍ण मिश्रा वह बच्‍चा है जो स्‍कूल के बाद खेलने या कार्टून देखने की बजाय दूसरे बच्‍चों को पढ़ाना पसंद करता है. आनंद एक स्‍कूल चलाता है , जिसमें 100 से भी ज्‍यादा बच्‍चे पढ़ने आते हैं. आनंद हर शाम अपने गांव के पास एक बाल चौपाल लगाता है और बच्‍चों को पढ़ाता है. आनंद के पास पढ़ने आने वाले बच्‍चे उन्‍हें ' छोटा मास्‍टर जी ' कहकर बुलाते हैं. बाल चौपाल की कक्षा में हर रोज किताबों से पाठ पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को नैतिकता का शिक्षा भी सिखाई जाती है. आनंद अपनी क्‍लास की शुरुआत ' हम होंगे कामयाब ' गीत के साथ करता है और क्‍लास के आखिर में राष्ट्रीय गान गाया जाता है. अपनी इस सेवा के लिए 7 वीं कक्षा के आनंद को ' सत्यपथ ब