। कुछ भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे। :)
मेरे
आसपास की महिलायें ( चाची , ताइजी
, अम्मा
, बुआजी
, और
मेरी माँ भी ) जो आधी उम्र गुज़रने के बाद भी उन गलियों, मौहल्लों , बाजारों और आसपड़ोस के
घरों को नहीं घूम पायीं , जहाँ
सालों पहले ब्याह कर आई थीं। घूमती भी कैसे !! बुलावा ( बुलौआ ) और आसपास के
मंदिरों तक जाने के लिए जिन्हें नाक तक पल्लू खिसकाए और साड़ी को हाथ से जरा ऊँचा
उचकाए चलना पड़ा हों , वो
कैसे ठीक - ठीक देख पाती कुछ भी ??
पर
पिछले 2-3 सालों में वही महिलायें बहुत से दायरे लाँघकर , आत्मविश्वास से भरी हुयीं
दिखती हैं। कुछ
भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे। :) और उन बच्चों , पतियों की मेहनत भी , जो उन्हें इस दुनिया में लाये , उन्हें सिखाया और समझाया। यही वजह
है कि बहुत कुछ बदला - बदला सा नजर आता है अब...गालियाँ , मोहल्लें , बाजार भले भी अब भी ना खंगाले गए
हों लेकिन उनकी ज़िन्दगी और रहन , सहन
का तरीका बहुत बदला है। जो कल तक बुलावा जाने से पहले बताशा भरने के लिए सबसे
जरुरी चीज हाथ में रुमाल होना समझती थीं , वो आज घर से निकलते हुए पूछती हैं
" अरे मोबाइल कहाँ रख दिया मैंने " :) इस बात से भी इत्तेफ़ाक नहीं कि उन
बताशों की वैल्यू भी घटी है ;)
ये
दिन आज बस उनके लिए :* बहुत सारा प्यार :)
PS - बाकी... महिलाओं और लड़कियों की आपबीती सुनकर हक़ीक़त तो आज भी
शर्मसार कर जाती है हमें। वो जो घुट रही है , सह रही है , लड़ रही हैं , पिट रही हैं , रो रही हैं।