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अगर पत्नी अच्छी हो तो पति को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है

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अगर पत्नी अच्छी हो तो पति को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है, लेकिन अगर पत्नी अच्छी न हो तो किसी राजा को भिखारी बना सकती है, कब होती है पत्नी की परख? नारी के साथ ही मित्र और धैर्य की परख करनी हो तो ध्यान रखें एक नीति श्रीराम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीराम कथा के साथ ही सुखी और सफल जीवन के लिए कई नीतियां भी बताई हैं। इन नीतियों का ध्यान रखा जाए तो हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। यहां जानिए सीता और माता अनसूया के संवाद के आधार पर हम किसी व्यक्ति को कब परख सकते हैं? माता अनसूया सीता से कहती हैं कि धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी। > इस चौपाई में माता कहती हैं कि धीरज यानी धैर्य की परख परेशानियों में ही होती है, क्योंकि विपरित हालात में व्यक्ति क्रोधित हो जाता है और गलती कर देता है। > धर्म की परीक्षा भी बुरे समय में ही होती है। अगर कोई व्यक्ति परेशानियों में भी बेईमानी नहीं करता है, झूठ नहीं बोलता है और धर्म के मार्ग पर ही चलते रहता है तो वह श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। > जब हमारे जीवन में गरीबी आती है, बीमारियां आती हैं और बुरा समय

दुलाराम जी मेघवाल... दुलाराम जी रतनगढ़ तहसील के प्रेमनगर, आलसर

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#मुलाकात __ ये हैं रतनगढ़ तहसील के प्रेमनगर, आलसर गांव के दुलाराम जी मेघवाल... दुलाराम जी  सेवाभाव से रोजाना 50 से अधिक लोगों के शरीर में दर्द, जोड़ो में दर्द, टूटी हुई हड्डी या नस, नाड़ी के दबने से होनेवाले दर्द का प्रभावी ईलाज अपने स्वयं के पैसों से देशी दवाईयां लाकर करते हैं। आप रोगी के घर जाकर देखने का भी कोई पैसा नहीं लेते हैं। एक तरफ समाज में दुलाराम जी जैसे साधारण कमाई वाले, कम पढ़ेलिखे या अनपढ़ निस्वार्थ सेवाभावी लोग देखने को मिलते हैं और दूसरी तरफ संपन्न और सभ्य समाज से कहाने वाले धरती के तथाकथित भगवान या डॉक्टर्स हैं। जो सरकार से उचित वेतन-भत्ते मिलने के बाद भी गरीब मरीजों से पैसे लेकर, जानबूझकर बाहर की दवाईयां लिखकर, अनावश्यक जांचें में कमीशन खाकर लूटने में कोई कोर कसर नहीं रखते हैं। दुलाराम जी व इनकी विचारों में कितना फर्क है। कभी सेवा की मूल भावना वाले पावन और संवेदनशील चिकित्सा पेशे में आज ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की लालसा सेवा की भावना पर हावी हो रही है। जो दुखद है और धरती के भगवानों से अनैतिक और असंवेदनशील काम करवा रही है। आमजन की नजरों में इन्हें गिरा रही है। . जा

दही में नमक डाल कर न खाऐं

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कभी भी आप दही को नमक के साथ मत खाईये . दही को अगर खाना ही है, तो हमेशा दही को मीठी चीज़ों के साथ खाना चाहिए, जैसे कि चीनी के साथ, गुड के साथ, बूरे के साथ आदि. इस क्रिया को और बेहतर से समझने के लिए आपको बाज़ार जाकर किसी भी साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की दूकान पर जाना है, और वहां से आपको एक लेंस खरीदना है. अब अगर आप दही में इस लेंस से देखेंगे तो आपको छोटे-छोटे हजारों बैक्टीरिया नज़र आएंगे. ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में आपको इधर-उधर चलते फिरते नजर आएंगे. ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए, क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे अंदर एंजाइम प्रोसेस अच्छे से चलता है. *हम दही केवल बैक्टीरिया के लिए खाते हैं. * दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं का घर माना जाता है. अगर एक कप दही में आप जीवाणुओं की गिनती करेंगे तो करोड़ों जीवाणु नजर आएंगे. अगर आप मीठा दही खायेंगे तो ये बैक्टीरिया आपके लिए काफ़ी फायेदेमंद साबित होंगे. *वहीं अगर आप दही में एक चुटकी नमक भी मिला लें तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे और उनकी लाश ही हमारे अंदर जाएगी जो कि किसी काम नहीं आएग

एक छोटी सी कहानी अरबी शेख की

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एक छोटी सी कहानी अरबी शेख और उसके ऊंट की भी होती है। अक्सर ये नीति की शिक्षा देने के लिए सुनाई पढ़ाई जाती है तो संभावना है कि आपने भी सुनी ही होगी। किस्सा कुछ यूँ है कि रेगिस्तान में दिन में गर्मी तो होती ही है, रातों को ठण्ड भी काफी बढ़ जाती है। ऐसी ही एक सर्द रात में अरबी जब अपने तम्बू में था तो उसके ऊंट ने गर्दन अन्दर घुसाई। Image credit thedailymash उसने मालिक से कहा, हुज़ूर ठण्ड बहुत है, मैं अपना सर तम्बू में रख लूं क्या ? मालिक राज़ी हो गया। थोड़ी देर में ऊंट फिर बोला, ठण्ड तो अब भी लग रही है, अपने अगले दोनों पाँव अन्दर कर लूं ? मालिक फिर राज़ी हो गया। इसी तरह करते करते पीठ और फिर पूरा ऊंट ही तम्बू में आ गया। तम्बू छोटा था और ऊंट बड़ा सा, तो मालिक और ऊंट दोनों के लिए जगह अब कम पड़ने लगी। दोनों एक दुसरे को धक्का देते अन्दर ही रहने की कोशिश करने लगे। अब बड़ा सा ऊंट कहाँ और आदमी की बिसात क्या ? धक्का मुक्की में अरबी हो गया तम्बू के बाहर और ऊंट आराम से तम्बू में बैठा रहा। ठण्ड से ठिठुरते इस अरबी शेख की कहानी अक्सर इसलिए सुनाई जाती है, ताकि लोगों को याद रहे कि जरुरत से ज्यादा अत

R.O. का लगातार सेवन बनेगा मौत का कारण*

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who report about ro water चिलचिलाती गर्मी में कुछ मिले या ना मिले पर शरीर को पानी ज़रूर मिलना चाहिए। अगर पानी RO का हो तो, क्या बात है ! परंतु *क्या वास्तव में हम आर. ओ. के पानी को शुद्ध पानी मान सकते हैं* ? *जवाब आता है बिल्कुल नहीं। और यह जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की तरफ से दिया गया है।* विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि इसके लगातार सेवन से हृदय संबंधी विकार, थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, सर दर्द आदि दुष्प्रभाव पाए गए हैं। यह कई शोधों के बाद पता चला है कि इसकी वजह से *कैल्शियम और मैग्नीशियम पानी से पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं* जो कि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। RO के पानी के लगातार इस्तेमाल से शरीर मे विटामिन *B-12* की कमी भी होने लगती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर 400 टीडीएस तक सहन करने की क्षमता रखता है परंतु RO में 18 से 25 टीडीएस तक पानी की शुद्धता होती है जो कि नुकसानदायक है। इसके *विकल्प में क्लोरीन को रखा जा सकता है जिसमें लागत भी कम होती है एवं पानी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं*। जिससे मानव का शारीरिक विकास अवरूद्ध नहीं होता।