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मनोज भार्गव, अब देंगे भारत के लाखों घरों में फ्री में बिजली

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                                                                                                           भारतीय अमेरिकी अरबपति परोपकारी मनोज भार्गव ने एक स्टेशनरी यानी अचल साइकिल पर से पर्दा उठाया है। बिजली पैदा करने वाली यह साइकिल ग्रामीण घरों को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकती है। इस उत्पाद को पेश करते हुए भार्गव ने कहा , ' यह अचल साइकिल बिजली पैदा करती है। पैडल मारने से एक चक्का घूमता है जिससे एक जनरेटर चलने लगता है। इससे जोड़ी गई एक बैटरी चार्ज होने लगती है। उन्होंने बताया कि साइकिल की अनुमानित कीमत 12-15 हजार के बीच हो सकती है। इसको अगले साल मार्च तक उपलब्ध करा दिया जाएगा। एक घंटे पैडल मारने से एक घर के लिए 24 घंटे की बिजली जरूरत पूरा हो सकती है। इससे घर में रोशनी करने के अलावा एक छोटा पंखा और एक सेल फोन को चार्ज किया जा सकता है। यह सब बगैर बिजली बिल , ईंधन खर्च और प्रदूषण के संभव होगा। भार्गव ने बताया , ' मैं इस बारे में एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी चर्चा कर चुका हूं। ' हालांकि भार्गव सरकारी विभागों के साथ कोई गठजोड़ क

अब केवल 3000 रु. में जिन्दगी भर बनाये रसोई गैस !

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जी हां, हम बात कर रहे हैं, एक अनोखे गोबर गैस प्लांट की जिसे डिजायन किया है श्री कृष्णराजू ने। श्री राजू मुदिगिरी तालुका के डाराडहली में एक वरिष्ठ पशु-चिकित्सक के रूप में कार्यरत रहे है। उन्हें नई तकनीकियों के विकास में भी काफी रुचि है। इस प्रयोक्ता हितैषी, कम लागत वाले बायोगैस प्लांट में की खासियत यह है कि इसमें एक बार में केवल एक बाल्टी गोबर की आवश्यकता होती है। इसे तैयार करने के लिए केवल एक 11फ़ीट लंबी, 7 फ़ीट चौड़ी 250 मि.मी की प्लास्टिक शीट तथा दो पीवीसी पाइप की ज़रूरत होती है। यानि टंकी बनाने के लिए गढ्ढा खोदने की ज़रूरत नहीं होती। टंकी का निर्माण इस प्लास्टिक शीट द्वारा ही किया जाता है। गोबर-पानी के मिश्रण को पीवीसी पाइप द्वारा डाला जाता है और एक घंटे के बाद मीथैन गैस का उत्पादन शुरु हो जाता है, जो 4 घंटों तक चालू रहता है। श्री कृष्णराजू के मुताबिक, बायो गैस के किसी अन्य प्लांट के निर्माण में केवल 20,000 रु. की आवश्यकता होती है, जिसमें वार्षिक मेंटिनेंस लागत भी शामित होती है, पर यह काफी सस्ती है और इसक संचालन काफी आसान। एक बार संस्थपित करने के बाद इसे 5-6 वर्षों तक चालू र

heart attack and cholesterol ayurvedic treatment

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heart attack and cholesterol ayurvedic treatment महत्वपूर्ण समाचारः- अवश्य पढें ये याद रखिये की भारत मैं सबसे ज्यादा मौते कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं। आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे। अमेरिका की कईं बड़ी बड़ी कंपनिया भारत मैं दिल के रोगियों (heart patients) को अरबों की दवाई बेच रही हैं ! लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर कहेगा angioplasty (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ। इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में एक spring डालते हैं जिसे stent कहते हैं। यह stent अमेरिका में बनता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है। इसी stent को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है व आपको लूटा जाता है। डॉक्टरों को लाखों रूपए का commission मिलता है इसलिए व आपसे बार बार कहता है कि angioplasty करवाओ। Cholestrol, BP ya heart attack आने की मुख्य वजह है, Angioplasty ऑपरेशन। यह कभी किसी का सफल नहीं होता। क्यूँकी डॉक्टर, जो spring दिल की नली मे डालता है वह बिलकुल pen की spring की तरह होती है। कुछ ही

चिकनगुनिया का इलाज

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चिकनगुनिया का इलाज एक सदी पुरानी बीमारी अब तक लाइलाज लक्षण... शरीर कमजोर, पानी की कमी मछर काटने के एक दो सप्ताह बाद लक्षण नजर आते  है                                जोड़ो में भयानक दर्द होता है मरीज का ब्लड प्रेसर तेजी से निचे गिरता है शरीर में खुजली होती है और लाल  पड़ जाते है भूख नहीं  लगती, उल्टी  ,खांसी, जुकाम भी हो सकता है असर धीरे धीरे मौत के क रीब शरीर तोड़कर रख देता है सिर दर्द और भुखर के साथ ये बीमारी एक हफ्ते से ज्यादा आपको परेसान कर सकती है किडनी, सांस लेने में मददकार अंगो और फेफड़ो पर हमला करता है| ये अंग काम करना बंद कर देते है इससे मरीज की मौत भी संभव है इलाज आराम ही है इलाज  चिकनगुनिया का अब तक कोई टिका विकसित नहीं हुआ है | जोड़ो और शरीर का दर्द कम करने के साथ बुखार से बचने बचने की  दवा दी जाती है| इसमे आराम जरुरी है| इसके बावजूद खुद दवा न ले | लक्षण दिखाई देने पर तुरंत अच्छे डॉक्टर की सलाह ले|

ममता ओर पिता का प्यार नसीब वालो को मिलता है

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पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि " उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।। बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी । पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है.. ?? तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया कि " जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना आता था मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह

। कुछ भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे। :)

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मेरे आसपास की महिलायें ( चाची , ताइजी , अम्मा , बुआजी , और मेरी माँ भी ) जो आधी उम्र गुज़रने के बाद भी उन गलियों , मौहल्लों , बाजारों और आसपड़ोस के घरों को नहीं घूम पायीं , जहाँ सालों पहले ब्याह कर आई थीं। घूमती भी कैसे !! बुलावा ( बुलौआ ) और आसपास के मंदिरों तक जाने के लिए जिन्हें नाक तक पल्लू खिसकाए और साड़ी को हाथ से जरा ऊँचा उचकाए चलना पड़ा हों , वो कैसे ठीक - ठीक देख पाती कुछ भी ?? पर पिछले 2-3 सालों में वही महिलायें बहुत से दायरे लाँघकर , आत्मविश्वास से भरी हुयीं दिखती हैं।   कुछ भी हो इसे सोशल नेटवर्किंग का कमाल ही कहेंगे।   :)   और उन बच्चों , पतियों की मेहनत भी , जो उन्हें इस दुनिया में लाये , उन्हें सिखाया और समझाया। यही वजह है कि बहुत कुछ बदला - बदला सा नजर आता है अब...गालियाँ , मोहल्लें , बाजार भले भी अब भी ना खंगाले गए हों लेकिन उनकी ज़िन्दगी और रहन , सहन का तरीका बहुत बदला है। जो कल तक बुलावा जाने से पहले बताशा भरने के लिए सबसे जरुरी चीज हाथ में रुमाल होना समझती थीं , वो आज घर से निकलते हुए पूछती हैं " अरे मोबाइल कहाँ रख दिया मैंने "   :)   इस बात से भी इ

क्या लेके आया बन्दा क्या लेके जाये गा

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पढोगे तो रो पड़ोगे जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई। फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी। और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म , गुलाबी , रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना , रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए। और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार । समय कैसे फटाफट निकल गया , पता ही नहीं चला। इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया , बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला। बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी , मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त , बच्चे की जिम्मेदारी , शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक