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ये वो बाते है | जो जीवन में किसी को भी नहीं बतानी चाहिये|

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चाणक्य नीति- पुरुषों को ये 4 बातें कभी भी किसी को बतानी नहीं चाहिए कौन हैं चाणक्य प्राचीन समय में आचार्य चाणक्य तक्षशिला के गुरुकुल में अर्थशास्त्र के आचार्य थे। चाणक्य की राजनीति में गहरी पकड़ थी। इनके पिता का नाम आचार्य चणीक था , इसी वजह से इन्हें चणी पुत्र चाणक्य भी कहा जाता है। संभवत: पहली बार कूटनीति का प्रयोग आचार्य चाणक्य द्वारा ही किया गया था। जब इन्होंने अपनी कूटनीति के बल पर सम्राट सिकंदर को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसके अतिरिक्त कूटनीति से ही इन्होंने चंद्रगुप्त जैसे सामान्य बालक को अखंड भारत का सम्राट भी बनाया। आचार्य चाणक्य द्वारा श्रेष्ठ जीवन के लिए चाणक्य नीति ग्रंथ रचा गया है। इसमें दी गई नीतियों का पालन करने पर जीवन में सफलताएं प्राप्त होती हैं। आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई नीतियों में सफल और सुखी जीवन के कई सूत्र बताए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति चाणक्य की नीतियों का पालन करता है तो निश्चित ही वह कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है। अक्सर जाने-अनजाने कुछ लोग ऐसी बातें दूसरों को बता देते हैं , जो भविष्य में किसी बड़े संकट का कारण बन जाती हैं। चाणक्य न

भारतीय इतिहास के सबसे बड़े सेक्युलर राजा की विनाश-गाथा

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भारतीय इतिहास के सबसे बड़े सेक्युलर राजा की विनाश-गाथा जब उत्तर भारत ख़िलजी , तुग़लक़ , ग़ोरी , सैयद , बहमनी और लोदी वंश के विदेशी मुसलमानों के हाथों रौंदा जा रहा था तब भी दक्षिण भारत के "विजयनगर साम्राज्य" ( 1336-1665) ने 300 से अधिक वर्षों तक दक्षिण मे हिन्दू अधिपत्य कायम रखा ! इसी विजयनगर साम्राज्य के महाप्रतापी राजा थे "कृष्णदेव राय" । बाबरनामा , तुज़के बाबरी सहित फ़रिश्ता , फ़ारस के यात्री अब्दुर्रज्जाक ने "विजयनगर साम्राज्य" को भारत का सबसे वैभवशाली , शक्तिशाली और संपन्न राज्य बताया है , जहां हिन्दू-बौद्ध-जैन धर्मामलंबी बर्बर मुस्लिम आक्रान्ताओं से खुद को सुरक्षित पाते थे ।  जिनके दरबार के ' अष्ट दिग्गज ' में से एक थे महाकवि "तेनालीराम" , जिनकी तेलगू भाषा की कहानियों को हिन्दी-उर्दू मे रूपांतरित कर "अकबर-बीरबल" की झूठी कहानी बनाई गयी ।  इसी शक्तिशाली साम्राज्य मे एक "सेक्युलर राजा रामराय" का उदय हुआ , जिस "शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य" पर 300 साल तक विदेशी आक्रांता गिद्ध आंख उठा कर देखने की ह

बचत का महत्व...

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बचत का महत्व....!!! एक किसान था। इस बार वह फसल कम होने की व‍जह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने का राशन का कहां से इंतजाम होगा।  यह चिंता उसे बार-बार सता रही थी। किसान की बहू का ध्यान जब इस ओर गया तो उसने पूछा ? पिताजी आजकल आप किसी बात को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। तब किसान ने अपनी चिंता का कारण बहू को बताया। किसान की बात सुनकर बहू ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह किसी बात की चिंता न करें। उस एक महीने के‍ लिए भी अनाज का इंतजाम हो जाएगा। जबचत का महत्व...ब पूरा वर्ष उनका आराम से निकल गया तब किसान ने पूछा कि आखिर ऐसा कैसे हुआ? बहू ने कहा- पिताजी जब से आपने मुझे राशन के बारे में बताया तभी से मैं जब भी रसोई के लिए अनाज निकालती उसी में से एक-दो मुट्‍ठी हर रोज वापस कोठी में डाल देती। बस उसी की वजह से बारहवें महीने का इंतजाम हो गया।  शिक्षा : ‍इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में बचत की आदत डालना चाहिए। ताकि किसान की तरह बुरे वक्त में जमा पूंजी काम आ सके...!!!!

इसे कहते है सजीविता अहसास

आजकल हर किसी के पास ओपिनियन है.. स्मार्टनेस की लड़ाई में मैटर कोई भी हो बीच में कूदने वालों की कमी नही.. सब बोलना चाहते हैं.. सब एक्सप्रेसिव् हो गए हैं.. ऐसा लगता है मानो ज्ञान की गंगा बह चली हो.. पर सब बकवास है.. किसी को कुछ नहीं आता.. मुझे तो नींद भी नहीं आती.. तुम्हें तो रोना भी नहीं आता.. उसे तो हँसना भी नहीं आता.. दर्द बाँटना नहीं आता.. निर्जीव कार के स्क्रैच का बदला लोग सजीव सर फोड़ के लेते हैं.. किसी को मारने नहीं आता , किसी को बचाने नहीं आता.. सुना किसी की मौत करोड़ों में बिकी है.. चौबीस घंटे से एक लाश पड़ी है पुल पर.. उठाने तो दूर , उसे देखने भी कोई भी नहीं आता.. मुझे आजकल लोगों के मिजाज पसंद आने लगे हैं.. कोई कुछ बताने नहीं आता तो कोई कुछ पूछने भी नहीं आता.. लिखता हूँ फिर लकीरें मिटाता हूँ , लिखना भी नहीं आता मिटाना भी नहीं आता.. चलो मान लिया तुम्ही ठीक हो , पर तुम्हे भी तो सर झुकाना नहीं आता मुझे गिरना नहीं आता , तुम्हें सम्भलना नहीं आता.

ये आजकल के चैनलों पर सास-बहू के अलावा कुछ आता ही नहीं है।

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"ये आजकल के चैनलों पर सास-बहू के अलावा कुछ आता ही नहीं है।" बूढ़ी माँ बोलीं। तभी अचानक टीवी पर फ्रांस में हुए हमलों की खबर सुनाई दी।  "फ्रांस में हुएे धमाके, 78 लोग मरे, 72 लोग घायल। ISIS का एक और आतंकवादी हमला।" ये सब सुनकर, कांपते हाथों से टीवी के चैनल बदल रही बूढ़ी माँ का दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था, मानो बम धमाके उनके घर में ही हुएे हों। बूढ़ी माँ ने बड़ी ही बेचैनी के साथ आवाज़ लगाई, "अरे राहुल के पापा, सुनते हो, ये न्यूज़ वाले क्या बक-बक कर रहे हैं। कह रहे हैं..." बीच में ही बात काटते हुएे एक भारी सी आवाज़ आयी जो लगभग 60 साल के आदमी की थी। वो अपना चश्मा साफ करते हुएे बोले, "अरे मोहतरमा, क्या तुम भी ये न्यूज़ चैनल देखती रहती हो। ये सब, साले बिके हुएे हैं। और वैसे भी, तुमहारी उम्र हो चली है, आस्था चैनल देखा करो।" इस बार बूढ़ी माँ, अपनी बात एक दर्द भरी आवाज़ में बोलीं, "कह रहे हैं कि फ्रांस में धमाके हुए हैं। " इतना सुनते ही पतिदेव सरपट दौड़कर आए, मानो उनकी ट्रेन छूट रही हो। भागने की वजह से उनका चश्मा टूट कर बिखर गया। उन्होंने आनन-

तीन सच्ची प्रेरणादायक कहानियाँ पेश हैं .सुधा चंद्रन,जादव मोलाई पायेंग,कर्नल सैंडर्स की|

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कौन कहता है कि आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता.. एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.. तीन सच्ची प्रेरणादायक कहानियाँ पेश हैं जो इस शेर को सार्थक करती हैं… दोस्तों, हम सभी अपनी ज़िन्दगी में कुछ-न-कुछ बनाना चाहते है , हम सभी अपने सपनों को पूरा करना चाहते है पर कभी-कभी हमारी life की ये जो मुश्किलें है/रुकावटें है , डर है हमें आगे बढ़ने से रोकते है पर अगर हमें कुछ करना है तो हमें इन मुश्किलों (difficulties) को अवसर (opportunities) में बदलना होगा | तो चलिए आज मैं इस पोस्ट के ज़रिये उन जांबाजों के जीवन की सच्ची कहानी बताता हूँ जिन्होंने हज़ार मुश्किलों के आने के बावजूद भी अपने सपनों को पूरा किया और दुनिया के लिए एक मिशाल बन गए | उम्मीद है की आप भी इनसे inspire होकर अपने सपनो को पूरा कर सकेंगे :- सुधा चंद्रन स्टोरी इन हिंदी सुधा चंद्रन जब 17 साल की तब dance की दुनिया में एक नाम बना चुकी थी 75 से ज्यादा shows कर चुकी थी | 17 की age में ही अपने सपने अपने passion को जी रही थी लेकिन ताश के पत्तों के ढेर की तरह उनके सपनों को टूटने में भी देर नहीं लगी | एक road accident हुआ और doctors को उनक

क्या जीवन में पैसा सबसे महत्वपूर्ण है?

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जानिए आपके जीवन में कितना महतवपूर्ण है पैसा क्या जीवन में पैसा सबसे महत्वपूर्ण है?   हम में बहुत से लोग हर सुबह ऐसी नौकरी पर जाने के लिए तैयार होते हैं जिसमे हमें ख़ुशी नहीं मिलती। या तो काम हमें अनाकर्षक लगता है, या नौकरशाही और राजनीति के चलते आप मजबूरी में फंसे हुए हैं।  वास्तव में आप महीने के अंत में आय के रूप में मिलने वाले चेक के लिए काम कर रहे हैं। कभी, हमें उन पैसों की जरूरत होती है, कभी कम पैसों में हम काम कर सकते हैं।  तब हम क्यों ऐसे काम करते रहते हैं, जो हमें हमारी पसंद का काम नहीं करने देता?  इसका कारण वह प्रसिद्ध धारणा है, कि "हम तभी खुश रहेंगे जब हमारे पास धन होगा"  हम इस धारणा को हर जगह देखते हैं : बहुत से उत्पादों के विज्ञापनों में ये बताया जाता है कि जब आप इन उत्पादों को खरीदेंगे तो आप खुश हो जायेंगे - और इन उत्पादों को खरीदने के लिए...... धन का लगातार प्रवाह होना चाहिए। इस धारणा को बल देने वाला दूसरा पहलू यह है कि, हम ये सोचते हुए बड़े होते हैं कि, हर महीने अच्छा वेतन मिलने से कार्यकाल के समाप्ति तक बहुत सारी बचत हो जाएगी जो हमारे